Hindi, asked by harshitarawat612, 11 months ago

35. punjab samas vigrah​

Answers

Answered by aaravs618gmailcom
1

Explanation:

‘समास’ का अर्थ है- संक्षेप। समास की सहायता से थोड़े शब्दों में अधिक बातें कही जा सकती हैं। इस प्रकार दो या दो से अधिक शब्दों के संयोग से जो नया एवं स्वतंत्र शब्द बनता है, उस शब्द को समासिक पद कहते हैं और शब्दों के संयोग को समास कहते हैं।

संधि और समास में अंतरः

(क) समास में दो पदों या शब्दों का योग होता है, संधि में दो वर्णों या अक्षरों का योग होता है।

(ख) संधि को तोड़ने को विच्छेद कहते हैं, जबकि समास का विग्रह किया जाता है।

उदाहरणार्थ-पीताम्बर, इसमें दो पद हैं पीत और अम्बर, पीत के त का अ और अम्बर का अ मिलकर आ बने, इस प्रकार इसका संधि-विच्छेद होगा-पीत + अम्बर, परन्तु इस समास का विग्रह होगा-पीत है, अम्बर जिसका।

(ग) हिन्दी में संधि केवल संस्कृत के तत्मस शब्दों में होती है, जबकि समास संस्कृत तत्मस, उर्दू, फारसी, अरबी, अंग्रेजी आदि हर प्रकार के शब्दों (पदों) में हो जाता है।

जहां समास होता है, वहाँ संधि अवश्य होती है ओर जहाँ संधि होती है वहाँ समास रह भी सकता है और नहीं भी रह सकता।

समास के भेदः

जिस शब्दों में समास होता है, उनकी प्रधानता अथवा अप्रधानता के आधार पर समास के चार भेद किए जाते हैं। जिस समास में पहला पद प्रधान होता है, उसे अव्ययी भाव समास कहते हैं, जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं, और जिसमें कोई पद प्रधान नहीं होता है, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। पहला पद विशेषण होने पर कर्मधारय या द्वन्द्व समास होता है। इस प्रकार समास कुल मिलाकर छः प्रकार के होते हैं।

समासों के लक्षण एवं उदाहरणः

1. अव्ययीभाव समास:

जिसमें पूर्वपद की प्रधानता हो तथा सामासिक पद अव्यय हो जाए, वह अव्ययीभाव समास कहा जाता है। ‘अव्ययीभाव’ का अर्थ है-जो अव्यय न हो, उसका अव्यय होना।

उदाहरणः प्रतिदिन, यथाशक्ति, आजन्म, आमरण, यथाविधि, यावज्जीवन, व्यर्थ यथा साध्य आदि।

अव्ययीभाव समास तीन वर्गों में मिलते हैं-

(क) हिन्दी: निडर, भरपेट, निधड़क, अनजाने आदि।

(ख) उर्दू (फारसी, अरबी): हररोज, हर साल, बेशक, बखूबी, नाहक आदि।

(ग) मिश्रित (भिन्न-भिन्न भाषाओं के मेल से निर्मित): हरदिन, बेकाम, बेखटके आदि।

2. तत्पुरुष समास:

तत्पुरुष समास में अंतिम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है, द्वितीय पद के विशेष्य होने के कारण समास में इस पद की प्रधानता रहती है, इसके पहले पद में कर्म कारक से अधिकरण कारक तक की विभक्तियों वाले पद अप्रत्यय रूप में रहते हैं।

तत्पुरुष समास के भेद

जिस तत्पुरुष समास के विग्रह में उनके अवयवों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ लगाई जाती हैं, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। इसी को सामान्यतः तत्पुरूष समास कहते हैं।

तत्पुरुष समास का दूसरा भेद है समानाधिकरण तत्पुरुष। इसके विग्रह में उसके दोनों शब्दों में एक ही विभक्ति लगती है। इसका प्रचलित नाम है कर्मधारय समास।

तत्पुरुष (व्यधिकरण तत्पुरुष) के भेद व्यधिकरण के प्रथम शब्द/पद में जिस विभक्ति का लोप होता है, उसी के कारक के अनुसार इस समास का नाम होता है।

तत्पुरुष (व्यधिकरण तत्पुरुष) के भेद और उदाहरण

कर्म या द्वितीया तत्पुरुषः जल पिपासु, आशातीत, देशगत आदि।

करण या तृतीया तत्पुरुषः मनमाना, गुणभरा, दईमाश, कपड़छन्न, मुँहमाँगा, दुगुना, मंदमाता आदि।

सम्प्रदान या चतुर्थी तत्पुरुषः रसोईघर, घुड़वच, ठकुरसुहाती, रोकड़ बही।

अपादान या पंचमी तत्पुरुषः देशनिकाला, गुरुभाई, कामचोर, लाटसाहब आदि।

संबंध या षष्ठी तत्पुरुषः वनमानस, घुड़दौड़, बैलगाड़ी, लखपति, पनचक्की, अगछौना, राजभवन आदि। अधिकांश व्यधिकरण इसी समास में बनते हैं।

3. कर्मधारय समास:

जिस समास के पद विशेष्य-विशेषण भाव को प्राप्त हो, कर्ता कारक के हो, और लिंगवचन में समास हो, वहां कर्मधारय समास होता है।

समानाधिकरण तत्पुरुष का प्रचलित नाम कर्मधारय है, यह कोई अलग समास नहीं है, इसी कारण कुछ लोग उसे समानाधिकरण तत्पुरुष भी कहते हैं।

उदाहरणः नीलगाय, भलामानुस, छुटभैया, बड़ा घर, नीलाम्बर, दुर्वचन, सुयोग्य अंधकार आदि।

4. द्विगु समास:

जिस कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाचक हो वह द्विगु (द्विगु कर्मधारय समास) कहा जाता है।

उदाहरण: त्रिभुवन, दुपहर, चौराहा आदि।

5. द्वन्द्व समास:

जिस समास में प्रत्येक पद प्रधान होता है, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं।

उदाहरण: राधाकृष्ण, मातापिता, ऋषिमुनि, संतमहंत, गायबैल, दालरोटी, सागपात, कपड़ेलत्ते, जीव-जन्तु, पाप-पुण्य, ऊंचा-नीचा आदि।

6. बहुब्रीहि समास:

जिस समास का कोई खण्ड प्रधान न हो, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास के विग्रह में ‘वाला’, ‘है जिसकी’, शब्द आते हैं।

जैसे-पीताम्बर पीले अम्बर हैं जिसके अर्थात् विष्णु, श्वेताम्बर, चतुर्भुज, दशानन।

कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अतंर:

कर्मधारय में समस्त पद का एक पद दूसरे पद का विशेषण होता है, बहुब्रीहि में विशेषण-विशेष्य संबंध नहीं होता है।

समस्त पद विग्रह समास

कमल नयन कमल रूपी नयन कर्मधारय

कमल के समान नयन हैं जिसके, विष्णु बहुब्रीहि

शांतचित्त चित्त जो शांत है कर्मधारय

शांत है चित्त जिसका बहुब्रीहि

Similar questions