Psychology, asked by ravik22780, 6 months ago

38.
किसने आदर्श सकारात्मक आदर का संप्रत्यय दिया है ?
मैकिनले
(A)
फ्रायड
(B)
रोजर्स
(D)
(C)
एडलर​

Answers

Answered by Vanshika4721
4

Hii❤️

किसने आदर्श सकारात्मक आदर का संप्रत्यय दिया है ?

=> रोजर्स ✔️✔️

Answered by syed2020ashaels
0

Answer:

रोजर्स ने आदर्श सकारात्मक आदर का संप्रत्यय दिया है

Explanation:

कार्ल रोजर्स का जन्म 8 जनवरी 1902 में ओकपार्क (अमेरिका) में हुआ। उन्होंने एक मनोचिकित्सक का कार्य करते हुए व्यक्तियों की समस्या का निराकरण वास्तविक तरीके से खोज निकाला और स्पष्ट किया कि व्यक्ति का स्व (self) ही केन्द्रीय तत्त्व है। इसके द्वारा ही व्यक्ति अपने वातावरण से अवगत होता है तथा इसी के माध्यम से वह अपने विचारों, संवेगों को आत्मसात् करता है। रोजर्स का सिद्धान्त मानव की सकारात्मक प्रकृति की अवधारणा पर आधारित है। यह विश्वास किया जाता है कि मानव मूल रूप से विवेकशील, सामाजिक, गतिशील, अग्रणी तथा यथार्थवादी है। ये सकारात्मक प्रवृत्तियाँ आत्म-सिद्धि की मूल प्रेरणाएँ समझी जा सकती हैं। कार्ल रोजर्स ने व्यक्तिव के जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है वह घटना विज्ञान पर आधारित है। यह वह विज्ञान है जिसमें व्यक्ति की अनुभूतियों, भावों, मनोवृत्तियों तथा स्वयं अपने बारे में या आत्मन तथा दूसरों के बारे में व्यक्तिगत विचारों का अध्ययन विशेष रूप से किया जाता है। रोजर्स के इस सिद्धान्त को आत्मन सिद्धान्त या व्यक्ति केन्द्रित सिद्धान्त भी कहा जाता है।

कार्ल रोजर्स ने इस सिद्धान्त को 1947 में अपने क्लीनिक में रोगियों का अध्ययन करके प्रस्तुत किया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है उनका विश्वास था कि व्यवहार आवश्यकताओं या चालकों पर निर्भर नहीं करता बल्कि उसके अन्दर विद्यमान उस तीव्र चालक बल पर निर्भर करता है जो उसके विभिन्न तरीकों से व्यवहार करने के लिए बाध्य करता है ।

व्यक्तित्व की व्याख्या के लिए मानवतावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन कार्ल रोजर्स एवं अब्राहम मैस्लो की विचारधाराओं से भरा है। यह सिद्धान्त व्यक्तित्व का विकास में स्व की अवधारणा एवं व्यक्ति की वैयक्तिक अनुभूतियों को ही सर्वाधिक महत्त्व देता है । इस सिद्धान्त के समर्थकों ने मनोविश्लेषण तथा व्यवहारवादियों पर यह आरोप लगाया है कि इन लोगों ने व्यक्ति के विकास को पूर्णतया यांत्रिक प्रक्रिया बना दिया है । रोजर्स एवं मैस्लो का विचार है कि व्यक्ति एक असहाय प्राणी नहीं है कि आन्तरिक मूल प्रवृत्तियाँ और बाह्य पर्यावरण जैसा चाहें वैसा उन्हें बनाते हैं। इनके अनुसार, व्यक्तित्व का विकास इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति किस रूप में स्वयं अपने आपको तथा अपनी अनुभूतियों को समझता है और विश्व के बारे में उसके विचार किस प्रकार के हैं। रोजर्स ने व्यक्तित्व की व्याख्या में आत्म या स्व को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। आत्म से तात्पर्य उन सभी विशेषताओं से है जो किसी व्यक्ति में पाई जाती हैं। इसका व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण तथा व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। है यह व्यवहार का निर्धारक है। व्यक्ति उसी रूप में व्यवहार करना चाहते हैं जो उनके आत्म से मेल खाते हैं और अवांछित कार्यों को चेतना में नहीं आने देते हैं। इस वास्तविक आत्म के अतिरिक्त रोजर्स ने आदर्श आत्म की भी कल्पना की है। दोनों में जितना ही मेल होगा, व्यक्तित्व उतना ही संगठित होगा। आत्म के विकास पर सामाजिक मूल्यांकन का भी प्रभाव पड़ता।

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