4.
1. कबीर के ब्रह्म के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
कबीर की रहस्य भावना से क्या समझते हैं?
3. कबीर की भक्ति भावना को व्याख्यायित कीजिए।
कबीर की सामाजिक चेतना पर आज के संदर्भ में विचार कीजिए।
5. कबीर की काव्यभाषा को स्पष्ट कीजिए।
कबीर के राम के स्वरूप पर विचार कीजिए।
7. कबीर की दार्शनिकता पर टिप्पणी कीजिए।
8. संत काव्य की दृष्टि से कबीर का मूल्यांकन कीजिए।
9. कबीर की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर विचार कीजिए।
10. निर्गुण संत कवियों में कबीर का स्थान निर्धारित कीजिए।
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Answer:
कबीर समाज-सुधारक और निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। इन्होंने कोई दार्शनिक मत प्रस्तुत नहीं किया है यद्यपि इन्होंने ब्रह्म, जगत्, माया, जीव पर जो मत प्रस्तुत किए है उसी से इनके दार्शनिक विचारों का मूल्यांकन किया जा सकता है। ब्रह्म हिन्दू दर्शन में इस सारे विश्व का परम सत्य है और जगत का सार है। वो दुनिया की आत्मा है।
कबीर वेदांत के अव्दैत से रहस्यवाद की भूमि पर आए है। उनका रहस्यवाद उपनिषदों के ऋषियों के समान रहस्यवाद हैं, जो अव्दैत के अंतर्विरोधों में समन्वय करने वाली अनुभूति है। वे सगुण की अपेक्ष निर्गुण ब्रह्म के उपासक हैं। इस कारण उनका भगवत-प्रेम रहस्यवाद कहलाया।
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी है। इनकी भाषा में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द सम्मिलित हैं। राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है।
कबीर के राम राजा न हों लोकनायक न हों लेकिन वे निर्गुण होते हुए भी सामाजिक-मानवीय गुणों के प्रतीक, स्रोत एवं समुच्चय हैं। द्विवेदीजी ने कहा था – कबीर के निर्गुण का मतलब गुणहीन नहीं, गुणातीत है।
कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक, एक समाज सुधायक,एक भक्त कवि, तथा एक सच्चे मानवतावादी संत थें। ये एक सीधे-साधे और सच्चे साधक थें, अतः इन्होनें कोई दार्शनिक सम्प्रदाय नहीं खड़ा किया वरन तत्कालीन भारत में प्रचलित दर्शनों से जो कुछ भी उन्हें भला एवं अनुकूल प्रतीत इन्होनें उसे ग्रहण कर लिया।
संत कवियों में एक भक्त, युग-चिंतक और एक प्रखर व्यक्ति के रूप में कबीर का स्थान अन्यतम है। इनके जन्म और मरण की तिथियों के संबंध में पर्याप्त मतभेद है। "1455 साल गए चंद्रवार एक ठाट ठए" के आधार पर उनका जन्म सवंत 1455 (सन 1398) को माना जाता है। कुछ लोग इसका अर्थ 1455 साल बीतने पर यानि 1456 लगाते हैं।
वर्तमान समय में है संत कबीर की प्रासंगिकता
प्रिंसिपल ने कहा कि संत कबीर दास का व्यक्तित्व प्रतिभा का धनी था. उनके विचारों को आत्मसात कर हर कोई अपने जीवन को सार्थक बना सकता है. ... परंतु जब तक समाज में वे दोष रहेंगे, जिनके विरुद्ध कवि रूप में कबीर ने संघर्ष किया.
संत कवियों में एक भक्त, युग-चिंतक और एक प्रखर व्यक्ति के रूप में कबीर का स्थान अन्यतम है। इनके जन्म और मरण की तिथियों के संबंध में पर्याप्त मतभेद है। "1455 साल गए चंद्रवार एक ठाट ठए" के आधार पर उनका जन्म सवंत 1455 (सन 1398) को माना जाता है। कुछ लोग इसका अर्थ 1455 साल बीतने पर यानि 1456 लगाते हैंl
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