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आगे चना गुरु मात दिये, ते लये तुम चाबि, हमें नहिं दीने।
स्याम कही मुसकाय सुदामा सों, चोरी की बानि में हौं जु प्रबीने
गाँठरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधारस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसेई भाभी के तन्दुल कीने।।
।।
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सुदामा चरित भावार्थ: सुदामा जी की अच्छी आवभगत करने के बाद कान्हा उनसे मजाक करने लगते हैं। वो सुदामा जी से कहते हैं कि ज़रूर भाभी ने मेरे लिए कुछ भेजा होगा, तुम उसे मुझे दे क्यों नहीं रहे हो? तुम अभी तक सुधरे नहीं। जैसे, बचपन में जब गुरुमाता ने हमें चने दिए थे, तो तुम तब भी चुपके से मेरे हिस्से के चने खा गए थे। वैसे ही आज तुम मुझे भाभी का दिया उपहार नहीं दे रहे हो।
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hope it will help u dear..❤️
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