(4) आजादी की लड़ाई का इतिहास पढ़कर मन में उठे विचार संक्षेप में लिखिए।
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भारत हर साल 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। यह दिन जहां हमारे आजाद होने की खुशी लेकर आता है वहीं इसमें भारत के खण्ड-खण्ड होने का दर्द भी छिपा होता है। वक्त के गुजरे पन्नों में भारत से ज्यादा गौरवशाली इतिहास किसी भी देश का नहीं हुआ, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप से ज्यादा सांस्कृतिक राजनीतिक सामरिक और आर्थिक हमले भी इतिहास में शायद किसी देश पर नहीं हुए और कदाचित किसी देश के इतिहास के साथ इतना अन्याय भी कहीं नहीं हुआ।
वो देश जिसे इतिहास में 'विश्व गुरु' के नाम से जाना जाता हो, उस देश के प्रधानमंत्री को आज 'मेक इन इंडिया' की शुरुआत करनी पड़ रही है। 'सोने की चिड़िया' जैसा नाम जिस देश को कभी दिया गया हो, उसका स्थान आज विश्व के विकासशील देशों में है। शायद हमारा वैभव और हमारी समृद्धि की कीर्ति ही हमारे पतन का कारण भी बनी। भारत के ज्ञान और सम्पदा के चुम्बकीय आकर्षण से विदेशी आक्रमणता लूट के इरादे से इस ओर आकर्षित हुए। वे आते गए और हमें लूटते गए। हर आक्रमण के साथ चेहरे बदलते गए लेकिन उनके इरादे वो ही रह, वो मुठ्ठीभर होते हुए भी हम पर हावी होते गए
हम वीर होते हुए भी पराजित होते गए क्योंकि हम युद्ध कौशल से जीतने की कोशिश करते रहे
और वे जयचंदों के छल से हम पर विजय प्राप्त करते रहे।
हम युद्ध भी ईमानदारी से लड़ते थे और वे किसी भी नियम को नहीं मानते थे। इतिहास गवाह है, हम दुश्मनों से ज्यादा अपनों से हारे हैं, शायद इसीलिए किसी ने कहा है, हमें तो अपनों ने लूटा, ग़ैरों में कहां दम था, हमारी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था। जो देश अपने खुद की गलतियों से नहीं सीख पाता, वो स्वयं इतिहास बन जाता है। हमें भी शायद अपनी इसी भूल की सज़ा मिली जो हमारी वृहद सीमाएं आज इतिहास बन चुकी हैं।
वो देश जिसकी सीमाएं उत्तर में हिमालय दक्षिण में हिन्द महासागर पूर्व में इंडोनेशिया और पश्चिम में ईरान तक फैली थीं, आज सिमटकर रह गईं और इस खंडित भारत को हम आजाद भारत कहने के लिए विवश हैं। अखंड भारत का स्वप्न सर्वप्रथम आचार्य चाणक्य ने देखा था और काफी हद तक चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर इसे यथार्थ में बदला भी था। तब से लेकर लगभग 700 ईस्वी तक भारत ने इतिहास का स्वर्णिमकाल अपने नाम किया था, लेकिन 712 ईस्वी में सिंध पर पहला अरब आक्रमण हुआ, फिर 1001 ईस्वी से महमूद गजनी, चंगेज खान, अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर और उसके वंशजों द्वारा भारत पर लगातार हमले और अत्याचार हुए।
1612 ईस्वी में जहांगीर ने अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने की इजाज़त दी। यहां इतिहास ने एक करवट ली और व्यापार के बहाने अंग्रेजों ने पूरे भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया, लेकिन इतने विशाल देश पर नियंत्रण रखना इतना आसान भी नहीं था यह बात उन्हें समझ में आई 1857 की क्रांति से। इसलिए उन्होंने 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाते हुए धीरे-धीरे भारत को तोड़ना शुरू किया।
1857 से 1947 के बीच अंग्रेजों ने भारत को सात बार तोड़ा-
1876 में अफगानिस्तान
1904 में नेपाल
1906 में भूटान
1914 में तिब्बत
1935 में श्रीलंका
1937 में म्यांमार
1947 में बांग्लादेश और पाकिस्तान
लेकिन हम भारतवासी अंग्रेजों की इस कुटिलता को नहीं समझ पाए कि उन्होंने हमारे देश की भौगोलिक सीमाओं को ही नहीं तोड़ा, बल्कि वे हमारे समाज, हमारी भारतीयता, इस देश की आत्मा को भी खण्डित कर गए। जाते-जाते वे इस बात के बीज बो गए कि भविष्य में भी भारत कभी एक न रह पाए। बहुत ही चालाकी से वे हिन्दू समाज को जाति क्षेत्र और दल के आधार पर जड़मूल तक विभाजित कर गए।जरा सोचिए कि क्यों जब हमसे आज हमारा परिचय पूछा जाता है तो हमारा परिचय ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर, मराठी, कायस्थ, दलित कुछ भी हो सकता है , किन भारतीय नहीं होता? अंग्रेजों के इस बीज को खाद और पानी दिया हमारे नेताओं ने जो देश के विकास की नहीं वोट बैंक की राजनीति करते आ रहे हैं।
जब इक्कीसवीं सदी के इस ऊपर से, एक किन्तु भीतर ही भीतर विभाजित भारत की यह तस्वीर अंग्रेज देखते होंगे तो मन ही मन अपनी विजय पर गर्व महसूस करते होंगे। हम भारत के लोग 15 अगस्त को किस बात का जश्न मनाते हैं? आजादी का? लेकिन सोचो कि हम आजाद कहां हैं?
हमारी सोच आज भी गुलाम है!
हम गुलाम हैं अंग्रेजी सभ्यता के जिसका अन्धानुकरण हमारी युवा पीढ़ी कर रही है। हम गुलाम हैं उन जातियों के जिन्होंने हमें आपस में बांटा हुआ है और हमें एक नहीं होने देती। हम गुलाम हैं अपनी सरकार की उन नीतियों की जो इस देश के नागरिक के उसके धर्म और जाति के आधार पर आंकती हैं, उसकी योग्यता के आधार पर नहीं। हम गुलाम हैं उस तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के जिसने हमें बांटा हुआ है धर्म के नाम पर। हम गुलाम हैं हर उस सोच के जो हमारे समाज को तोड़ती है और हमें एक नहीं होने देती।
हम आज भी गुलाम हैं अपने निज स्वार्थों के जो देश हित से पहले आते हैं। अगर हमें वाकई में आजादी चाहिए तो सबसे पहले अपनी उस सोच अपने अहम से हमें आजाद होना होगा, जो हमें अपनी पहचान 'केवल भारतीय' होने से रोक देती है। हमें आजाद होना पड़ेगा उन स्वार्थों से जो देशहित में रुकावट बनती हैं। अब वक्त आ गया है कि हम अपनी आजादी को भौगोलिक अथवा राजनीतिक दृष्टि तक सीमित न रखें। हम अपनी आज़ादी अपनी सोच में लाएं। जो सोच और जो भौगोलिक सीमाएं हमें अंग्रेज दे गए हैं, उनसे बाहर निकलें।
विश्व इतिहास से सीखें कि जब जर्मनी का एकीकरण हो सकता है, जब बर्लिन की दीवार गिराई जा सकती है, जब इटली का एकीकरण हो सकता है, तो भारत का क्यों नहीं? चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, महारानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, रामप्रसाद बिस्मिल, सुभाषचंद्र बोस, अश्फाकउल्लाह खान ने अपनी जान अखंड भारत के लिए न्योछावर की थी, खण्डित भारत के लिए नहीं। जिस दिन हम भारत को उसकी खोई हुई अखंडता लौटा देंगे, उस दिन हमारी ओर से हमारे वीरों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित होगी।
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भारत हर साल 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। यह दिन जहां हमारे आजाद होने की खुशी लेकर आता है वहीं इसमें भारत के खण्ड-खण्ड होने का दर्द भी छिपा होता है। वक्त के गुजरे पन्नों में भारत से ज्यादा गौरवशाली इतिहास किसी भी देश का नहीं हुआ, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप से ज्यादा सांस्कृतिक राजनीतिक सामरिक और आर्थिक हमले भी इतिहास में शायद किसी देश पर नहीं हुए और कदाचित किसी देश के इतिहास के साथ इतना अन्याय भी कहीं नहीं हुआ।
वो देश जिसे इतिहास में 'विश्व गुरु' के नाम से जाना जाता हो, उस देश के प्रधानमंत्री को आज 'मेक इन इंडिया' की शुरुआत करनी पड़ रही है। 'सोने की चिड़िया' जैसा नाम जिस देश को कभी दिया गया हो, उसका स्थान आज विश्व के विकासशील देशों में है। शायद हमारा वैभव और हमारी समृद्धि की कीर्ति ही हमारे पतन का कारण भी बनी। भारत के ज्ञान और सम्पदा के चुम्बकीय आकर्षण से विदेशी आक्रमणता लूट के इरादे से इस ओर आकर्षित हुए। वे आते गए और हमें लूटते गए। हर आक्रमण के साथ चेहरे बदलते गए लेकिन उनके इरादे वो ही रह, वो मुठ्ठीभर होते हुए भी हम पर हावी होते गए
हम वीर होते हुए भी पराजित होते गए क्योंकि हम युद्ध कौशल से जीतने की कोशिश करते रहे
और वे जयचंदों के छल से हम पर विजय प्राप्त करते रहे।