4. आपत्काले तु सम्प्राप्ते यन्मित्रं मित्रमेव तत्।
वृद्धिकाले तु सम्प्राप्ते दुर्जनोऽपि सुहृद् भवेत्॥
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hehe pehle hi de diya answer
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. मनुष्य के विपत्ति के समय जो मित्र उसकी मदद करे ,वही उसका सच्चा मित्र होता है ।अच्छे समय में तो दुर्जन मनुष्य भी अच्छे मित्र बन जाते है । संकट के समय में जो मित्रता निभाता है, वही वास्तव में मित्र है। उन्नति के समय में तो शत्रु भी मित्र बन जाया करते हैं।
2. व्यक्ति विपत्ति में भी मित्रता निभाता है वही सच्चा मित्र होता हैं। वरना समृद्धी के समय तो दुर्जन भी मित्र होते ही हैं।
सच्चे मित्र की पहचान तो विपत्ति के समय में होती है ।
सच्चे मित्र संकट के समय ही काम आते हैं |
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