4. अब मैं नाच्यो बहुत गुपाल ।
महामोह के नूपुर बाजत निंदा सबद रसाल।
भ्रम भोयौ मन भयौ पखावज चलत असंगत चाल।
तृष्णा नाद करति घट भीतर नाना विधि दै ताल।
माया को कटि फेंटा बाँध्यौ लोभ तिलक दियौ भाल।।
कोटिक कला काछि दिखराई जल थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अबिद्या दूरि करौ नंदलाल।।
काम क्रोध कौ पाहिरि चोलना कंठ बिषय की माल ।।
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