Sociology, asked by syedmohammed7337, 7 months ago

4. 'अब न चूक चौहान' वाले प्रसंग के बारे में
बताइए।
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Answered by shilpanarzary04934
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Answer:

मत चूको चौहान …

बहुत पुराना और बहुत ही अर्थपूर्ण दोहा कहा गया था आज से कोई आठ सौ साल पहले | आप लोग समझ गए होंगे किसकी बात हो रही है यहाँ ? अगर नहीं तो किस्सा और भी ज्यादा रोमांचक होने वाला है |

अच्छा एक बात और है, ये मैत्री का सम्बन्ध शायद किसी भी अन्य सम्बन्ध से सर्वथा श्रेष्ठ रहा है | जब कभी भी दुनियादारी से मन ऊबे तो कृष्ण और सुदामा की कहानी पढ़िए थोड़ी, या फिर राम और हनुमान की कहानी, सुग्रीव, जामवंत कितने तो पात्र और घटनाएँ इस सन्दर्भ में अपनी प्रविष्टि की मजबूत वकालत करते हुए दिखायी देने लगते हैं | शायद ये हमारी संपन्न संस्कृति का प्रमाण भी है कि इतिहास हमे वीरता, प्रेम, मैत्री आदि के उचित, पुष्ट, तर्कसंगत एवं भावपूर्ण, अनेकों किस्से देता है | आज का किस्सा भी एक रोचक मैत्री प्रसंग से ओतप्रोत है | अगर इसमें मैत्री का प्राधान्य नहीं होता तो शायद ये किस्सा इतना अधिक पावन नहीं हो सकता था |

बारहवीं शताब्दी में,अजमेर में एक महान हिन्दू सम्राट हुए, पृथ्वीराज चौहान | एक नायक जीवन का उपभोग किया उन्होंने | वीरता जैसे उनके रक्त में सम्मिलित थी | कहते हैं युवावस्था में ही उन्हें, शब्दभेदी बाण चलने में महारत हासिल हो चुका था | 1179 ई. में अपने पिता की एक संग्राम में मृत्यु के बाद उन्होंने, सिंघासन को संभाला | अपने राज्य विस्तार को लेकर, उन्होंने जो पराक्रम किये उसके चलते, उनकी एक वीर योद्धा एवं शाशक की छवि स्थापित हो चुकी थी | इसी क्रम में उन्होंने खजुराहो और महोबा के चंदेलों पर आक्रमण किये और सफल रहे | कन्नौज के गढ़वालों पे आक्रमण किये | इसके उपरांत इस किस्से को रोमांचक मोड़ देने वाली घटना घटती है | मुहम्मद गोरी, सन ११९१ में पूर्वी पंजाब के भटिंडा में आक्रमण करता है जो कि पृथ्वीराज चौहान के शाशकीय परिक्षेत्र से संलग्न था | पृथ्वीराज चौहान, कन्नौज से मदद मांगता है और उसे बदले में मिलता है सिर्फ इनकार | इसके बावजूद वो बिना भयभीत हुए, निकल पड़ता है भटिंडा की तरफ और तराइन में मुठभेड़ होती है शत्रु से | इसी युद्ध को इतिहास तराइन के प्रथम युद्ध के नाम से जानता है | इस युद्ध में पृथ्वीराज विजयी होते हैं और मुहम्मद गोरी को बंधक बना लिया जाता है, किन्तु अपने स्वभाव के अनुरूप दया भाव से, गोरी को रिहा भी कर दिया जाता है, और यही निर्णय बाद में गलत साबित हुआ | पृथ्वीराज को कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री के साथ प्रेम हो जाता है , जयचंद इस रिश्ते को मंजूरी नहीं देता है | जयचंद इस प्रस्ताव से नाखुश होकर, प्रस्ताव के प्रतिरोध में एक स्वयंवर का आयोजन करता है और पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया जाता है | लेकिन नियति को कुछ और मंज़ूर था, स्वयंवर के समय नाटकीय रूप से पृथ्वीराज हाज़िर होते हैं और संयुक्ता (जयचंद की पुत्री ) को लेकर, तमाम प्रतिरोधों की धता बताते हुए दिल्ली आ पहुँचते हैं |

जयचंद इस अपमान का बदला लेने की फ़िराक में था, उधर मुहम्मद गोरी भी प्रथम युद्ध का प्रतिशोध लेना चाहता था | अर्थात् पृथ्वीराज के दोनों शत्रु मिल चुके थे | मुहम्मद गोरी , राजपूतों की युद्ध परंपरा के प्रतिकूल समय पर आक्रमण करता है और इस तरह तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय होती है और उसे बंधक बना लिया जाता है | इस पूरे घटनाक्रम में पृथ्वीराज के एक मित्र सदैव उनके साथ रहे | विद्वानों का ऐसा मानना है कि उनके इस मित्र का जन्म भी उसी दिन हुआ था जिस दिन पृथ्वीराज का हुआ था और इन दोनों मित्रों की मृत्यु भी एक ही दिन, लगभग एक ही समय पर हुई |हालांकि काफ़ी मतभेद भी उत्त्पन्न हुए हैं इस कथानक को लेकर | उनके इस मित्र का नाम था — चंदबरदाई | चंदबरदाई को इनके राज्य में राजकवि का दर्ज़ा प्राप्त था | पृथ्वीराज के जीवन को सूक्ष्मता से अनुभव करते हुए चंदबरदाई ने पिंगल (जो कि राजस्थानी में बृजभाषा का पर्याय है ) भाषा में एक काव्यग्रंथ लिखा, जिसे हिंदी भाषा का प्रथम एवं सबसे बड़ा काव्य ग्रन्थ माना गया | ग्रन्थ का नाम हुआ — पृथ्वीराज रासो |

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hope it works.......

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