4. अरुणोदय [सवैया] सातहु दीपनि के अवनीपति हारि रहे जिय में जब जाने। बीस बिसे व्रत भंग भयो, सो कहो, अब, केशव, को धनु ताने? शोक की आगि लगी परिपूरण आइ गए घनश्याम बिहाने। जानकि के जनकादिक के सब फूलि उठे तरुपुण्य पुराने॥
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I don't know
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sorry ♀
plz
dont
mine
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सातों द्वीपों के राजा जनक की प्रतिज्ञा पूरी करके सीता से विवाह करने की इच्छा से जनकपुरी में आये थे। जब कोई भी शिवजी के धनुष को तोड़ने में समर्थ नहीं हो सका तो जनकजी दुखी और निराश हो उठे। उनका मन विषाद से भर गया। उनके मन में यह विचार आया कि क्या पृथ्वी वीरों से रहित हो गयी है। तभी राम ने धनुष उठाकर उन्हें प्रसन्न किया। उसी अवसर का वर्णन महाकवि केशवदास इस पद्यांश में कर रहे हैं। कवि कह रहे हैं कि सीता स्वयंवर में उपस्थित सातों द्वीपों के राजा शिव के धनुष को उठाने
में असमर्थ होकर हार मान गये। राजा जनक ने जब अपने मन में यह बात जानी तो समझ लिया
कि मेरा व्रत पूरी तरह भंग हो गया है क्योंकि अब शिव के धनुष को कौन उठाकर खींचेगा।
जनकजी के मन में पूरी तरह से क्षोभ की आग लग गयी। तभी प्रातःकाल के काले बादल के
समान राम आ गये। उनके आने से जानकी, जनक आदि सभी के पुराने और मुरझाये हुए वृक्ष
रूपी पुण्य फूल उठे। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार आग लगने के अवसर पर उमड़ने
वाले बादलों की वर्षा से मुरझाये हुए वृक्ष पुनः लहलहाने लगते हैं, उसी प्रकार राम के आने से
जानकी जी और जनक आदि के पुराने पुण्य उदित होने लगे। उन्हें धनुष के टूटने की आशा बँध