4. बालक स्वभावतः संवेदनशील होता है, उसमें कल्पनाशक्ति भी तीव्र होती है, उसका जीवन-निरीक्षण भी। मुख्य बात 1 यह है कि वह अपने अनुभवों के आधार पर कल्पना द्वारा जीवन की पुनर्रचना करता है, अपने अनुसार। कल्पना के रंगों में डूबी इस जीवन की पुनर्रचना के रंग निस्संदेह भावुक हैं। इन चित्रों के रंग में डूबकर वह उन्हीं चित्रों प्राप्त संवेदनाओं में भावुक होकर रम जाता है। अपने मनोमय जीवन के इन क्षणों में, जब वह उन चित्रों में तन्म होकर, उनमें प्रस्तुत हुए जीवन की संवेदनाएँ और अनुभूतियाँ ग्रहण करने लगता है, उस समय वास्तविक बाह्य क्रिया-प्रतिक्रिया करने में व्यस्त और ग्रस्त रहनेवाले मन को बहुत पीछे छोड़ जाता है, उसके ऊपर उठ जाता उससे परे हो जाता है। संक्षेप में, एक ओर उसकी मुक्ति हो जाती है तो दूसरी ओर उसी के साथ एकबद्धता जाती है। तटस्थता और तन्मयता, दूरी और सामीप्य का द्वंद्व, उच्चतर स्तर पर एकीभूत हो जाता है। इस प्रकार के अनुभव बालकों से लेकर वृद्धों तक होते हैं, कवियों से लेकर अकवियों तक होते हैं, मज़दू लेकर संपन्न व्यक्ति तक होते हैं। लेखकों से श्रोताओं तक होते हैं। इन्हीं अनुभवों को हम कलात्मक अनुभव सौंदर्य अनुभव कहते हैं। केवल मनुष्य ही सौंदर्यानुभव प्राप्त कर सकते हैं, पशु नहीं।
श्न (क) बालक की सामान्य स्वाभाविक विशेषताएँ लिखिए।
(ख) बालक अपने जीवन की पुनर्रचना किस प्रकार करता है?
(ग) मनोमय जीवन का अनुभव कौन-कौन प्राप्त कर सकते हैं?
(घ) सौंदर्य के संदर्भ में मनुष्य और पशु किस प्रकार भिन्न हैं?
Answers
(क) बालक भय और क्रोध को नियंत्रित करना सीख लेता है। वह अपने माता-पिता व अध्यापकों के सामने भी अपनी भावनाएँ प्रकट करने में संकोच करते है। साथ ही वे यह भी सीख लेते है कि किसके सामने कौन सी भावना को व्यक्त करना लाभकारी हो सकता है।
(ग)जीवन में आगे बढ़ने के साथ आपको नई चीजें सीखने का मौका मिलता है। जीवन में अनुभव समय के साथ ही मिलता है आप छोटी उम्र में ही सब समझ नहीं पाते हैं। इसलिए आप समय के साथ कई चीजें सीखते जाते हैं जिसे हम अनुभव कहते हैं। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अनुभव अच्छा भी हो सकता है तो बुरा भी। जीवन में अच्छे के साथ बुरे अनुभव होना भी जरुरी होता है। अगर अच्छे अनुभव आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं तो वहीं बुरे अनुभव आपको कुछ सिखाकर जाती हैं। यह दोनों ही आपको सफलता प्राप्त करने में मदद करते हैं। कई तरीकों से अनुभव आपके गुरु ही होता है जो आपको बहुत कुछ सिखा देते हैं।
(घ)संस्कृति का काम आदमी के दोष को कम करना उसके गुण को अधिक बनाना हैं. मनुष्य भी एक तरह का जानवर ही है पर जानवर के गुण यानी पशुत्व को छोड़कर वह जितना भी आगे बढ़ता है उसकी संस्कृति भी उतनी ही अच्छी होती जाती है.