4. बारि टारि डारौ कुम्भकर्णहि बिदारि डारौं,
मारि मेघनादै आजु यौं बल अनंत हौं
कहै 'पद्माकर' त्रिकूट ही को ढाय डारौं,
डरत करेई जातुधानन को अंत हौं।
अच्छहि निरच्छ कपि ऋच्छहिं उचारौ इमि,
तोत्र तुच्छ तुच्छन को कछुवै न गत हौं।
जारि डारौं लंकहिं उजारि डारौं उपवन,
मारि डारों रावण को तो मैं हनुमंत हौं।।
रस बताईए
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Explanation:
कुम्भकर्ण रामायण के एक प्रमुख पात्र का नाम है। वह ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र तथा लंका के राजा रावण का छोटा भाई था। कुम्भ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण इसका नाम कुम्भकर्ण रखा गया था। यह विभीषण और शूर्पनखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही इसके अंदर बहुत बल था, इतना कि एक बार में यह जितना भोजन करता था उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे। जब इनके पिता ने तीनों भाइयों को तपस्या करने के लिए कहा और भगवान ब्रह्मा जी ने इन्हें दर्शन दिए तो देवताओं ने माता सरस्वती से प्रार्थना की जब कुम्भकर्ण वरदान माँगे तो वे उसकी जिव्हा पर बैठ जाएँ। परिणाम स्वरूप जब कुम्भकर्ण इंद्रासन माँगने लगा तो उसके मुख से इंद्रासन की जगह निंद्रासन (सोते रहने का वरदान )निकला जिसे ब्रह्मा जी ने पूरा कर दिया परंतु बाद में जब कुम्भकर्ण को इसका पश्चाताप हुआ तो ब्रह्मा जी ने इसकी अवधि घटा कर एक दिन कर दिया जिसके कारण यह छः महीने तक सोता रहता फिर एक दिन के लिए उठता और फिर छः महीने के लिए सो जाता,परंतु ब्रह्मा जी ने इसे सचेत किया कि यदि कोई इसे बलपूर्वक उठाएगा तो वही दिन कुम्भकर्ण का अंतिम दिन होगा।