4. डी. ए. वी. के साथ दयानन्दजी और हंसराजजी का क्या सम्बन्ध
है?
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महर्षि दयानन्द सरस्वती, वैदिक धर्म वा आर्यसमाज की विचारधारा को आदर्श मानकर जिस व्यक्ति ने अपना जीवन देश व समाज से अज्ञान, अशिक्षा व अविद्या को दूर करने में समर्पित किया उसे हम महात्मा हंसराज जी के नाम से जानते हैं। जो मनुष्य अपने जीवन में धन-सम्पत्ति एवं अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करता हैउसका जीवन कुछ कष्टमय अवश्य होता है। छोटे-छोटे त्याग के कामों का उतना महत्व नहीं होता जितना अपने अधिकांश व प्रायः सभी सुखों के त्याग करने का होता है। इसी कारण देश के लिये बलिदान देने वालों को सर्वत्र नमन करने सहित उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखकर उनसे प्रेरणा ग्रहण की जाती है। ऋषि दयानन्द की 30 अक्तूबर, सन् 1883 में मृत्यु होने पर उनके विचारों के अनुरूप शिक्षा का प्रचार करने के लिए जिस स्कूल व कालेज की स्थापना का प्रस्ताव आर्यसमाज, लाहौर की ओर से किया गया था उसको आगे बढ़ाने और सफल करने के लिये लगभग 22 वर्षीय महात्मा हंसराज जी ने 27 फरवरी, सन् 1886 को अपने जीवन-दान करने की घोषणा की थी। इसका सुखद परिणाम यह हुआ था कि आर्यसमाज लाहौर के द्वारा दयानन्द ऐंग्लो वैदिक स्कूल स्थापित हो सका था जिसने समय के साथ उन्नति करते हुए देश से अविद्या दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महात्मा हंसराज जी नवसृजित स्कूल के प्रिंसिपल बनाये गये थे। महात्मा जी ने डी.ए.वी. स्कूल से आजीवन बिना कोई वेतन लिये तन व मन से स्कूल व कालेज की सेवा का जो महाव्रत लिया था उससे उन्हें, उनके अपने परिवार के सदस्यों सहित उनके अपने भाई व उनके परिवार के सदस्यों को भी कठोर साधना एवं कष्टो का जीवन व्यतीत करना पड़ा। महात्मा जी ने एक गृहस्थी होते हुए अपने इस महाव्रत का पालन करके एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी उपमा हमें कहीं दिखाई नहीं देती। एक प्रकार से हम कह सकते हैं कि महात्मा जी ने आर्यसमाज के नौवें नियम का पालन किया जिसमें कहा गया था कि प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में सन्तुष्ट नहीं रहना चाहिये अपितु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये। महात्मा जी ने अपने त्यागपूर्ण कार्यों से अपनी नैतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति सहित धर्म, विद्या एवं संस्कृति तथा सबकी सामाजिक उन्नति में तत्पर होने का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।
महात्मा जी का जन्म दिनांक 19-4-1864 को ग्राम बजवाड़ा जिला होशियारपुर में लाला चुन्नीलाल जी के यहां हुआ था। 15 वर्ष की अवस्था में आर्यसमाज, लाहौर के प्रधान लाला साईंदास जी के सत्संग से उन पर आर्यसमाज का रंग चढ़ा। आपने सन् 1885 में गवर्नमेन्ट कालेज, लाहौर से बी0ए0 पास किया था। आप पंजाब में मेरिट में दूसरे स्थान पर थे। उन दिनों पंजाब में भारत के पंजाब, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश एवं दिल्ली के कुछ भागों सहित पूरा पश्चिमी पाकिस्तान भी सम्मिलित था। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि महात्मा हंसराज कितनी उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी थे। यदि वह अंग्रेजों की नौकरी करना चाहते तो बड़े से बड़ा पद उनको मिल सकता था। आर्थिक प्रलोभनों में न फंसना और उन पर पूर्णतः विजय पाना अति दुष्कर कार्य है जिसे विरले ही कर पाते हैं। इसी कारण हंसराज जी के नाम के साथ ‘महात्मा’ शब्द जुड़ा है जो एक वास्तविक महात्मा के सच्चे आदर्श रूप को प्रस्तुत करता है।