4. हमारे हरि हारिल की तकरी।
मन क्रम बचन नन्द-नन्दन उर, यह दृढ करि पकरी।।
जागत-सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करई ककरी।।
सुतौ व्याधि हमकों ले आए, देखी सुनी न करी।
यह तो सूर तिनहि ले साँपों, जिनके मन चकरी।।
ईतत
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