Hindi, asked by nawleshprasad1984, 7 months ago

(4)
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना।
मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
जिन्ह के असि मति सहज न आई।
ते सठ कत हठि करत मिताई।।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा।
गुन प्रकटै अवगुनहि दुरावा।।

देत-लेत मन संक न धरई।
बल अनुमान सदा हित करई।।
आगे कह मृदु वचन बनाई।
पाछे अनहित मन कुटिलाई।।
जाकर चित अहि गति सम भाई।।
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई।।
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी।
कपटी मित्र सूल सम चारी।।
-तलसीदास​

Answers

Answered by anjnadadwal143
0

Answer:

so what we can do in this plz tell me then I'll answer it

Similar questions