4. को भारः समानां, किं दूरं व्यवसायिनाम।
को विदेशः सविद्यानां, कः परः प्रियवादिनाम्॥
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Explanation:
कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥
समर्थ व्यक्ति को भार कहाँ ? व्यवसायी इन्सान को दूरी कहाँ ? विद्यावान के लिए विदेश (जैसा) कहाँ ? प्रियवादी को कोई पराया कहाँ ?
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शक्तिशाली मनुष्य के लिए कोई कार्य भारी नहीं होता है
जैसे व्यापारी के लिए कोई स्थान दूर नहीं होता
विदुषा के लिए कोई स्थान विदेश नहीं होता
उसी तरह जो मानव अच्छे वचन बोलता है उसके लिए कोई व्यक्ति पराया नहीं होता
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