Science, asked by ajeet123456, 11 months ago

4. कभी-कभी जंगलों में अपने आप आग लग जाती है। ऐसा कैसे होता होगा?​

Answers

Answered by kirankour8984
13

Answer:

Jada Garmi Ho jati hai

Explanation:

is lea

Answered by bablu620
6

Explanation:

सुरेश भाई

सुरेश भाई

हिमालयी राज्यों में बारिश और बर्फ की कमी के चलते जंगलों में आग थमने का नाम नहीं ले रही है। उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर के जंगलों में हर वर्ष जनवरी से ही आग की घटनाएं प्रारंभ हो जाती हैं। बारिश की बूंदें ही आग को बुझाती हैं। इस बार केवल उत्तराखंड में ही 1,244 हेक्टेयर जंगल जल गए हैं। पिछले 16 वर्षों में यहां के लगभग 40 हजार हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। जैव विविधता भी खतरे में पड़ गई है। आग लगने से न सिर्फ राज्य, बल्कि दूसरे क्षेत्रों के पर्यावरण पर भी असर पड़ता है। आग के धुएं से उठने वाली धुंध जहां दिक्कतें खड़ी करती है, वहीं तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी बढ़ती है। वन विभाग प्रतिवर्ष वनों में वृद्वि के आंकड़े दर्ज करता है। लेकिन आग के प्रभाव के कारण कितने जंगल कम हुए हैं, यह सच्चाई सामने नहीं आ रही है।

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देश के अन्य भागों के जंगल भी आग की चपेट में आए हैं। एक अनुमान है कि प्रतिवर्ष लगभग 37 लाख हेक्टेयर जंगल प्रभावित हो रहे हैं। कहा जाता है कि इन जंगलों को पुनर्स्थापित करने के नाम पर हर वर्ष 440 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने होते हैं। उत्तराखंड वन विभाग ने तो पिछले 10 वर्षों में आग की घटनाओं का अध्ययन भी कराया है, जिसमें बताया गया कि 3.46 लाख हेक्टेयर जंगल आग के लिए संवेदनशील हैं। ताज्जुब तो तब हुआ, जब वन विभाग एक ओर वनाग्नि सुरक्षा पर बैठकें कर रहा था, और दूसरी ओर इस फरवरी में ही कंट्रोल बर्निंग के नाम पर उत्तरकाशी में तीन हजार हेक्टेयर जंगल में आग लगा दी गई। हिमाचल सरकार ने इस बार वनाग्नि नियंत्रण के लिए 1,900 स्वयंसेवियों को लगाया है। वे आग बुझाने में लोगों का सहयोग लेंगे। यह तभी होगा, जब आग के कारणों को भी समझा जा सके।

देश भर के पर्यावरण संगठनों ने कई बार मांग की है कि 'वनों को गांव को सौंप दो।' अब तक यदि ऐसा हो जाता, तो वनों के पास रहने वाले लोग स्वयं ही वनों की आग बुझाते। वन विभाग और लोगों के बीच में आजादी के बाद अब तक सामंजस्य नहीं बना है। जिसके कारण लाखों वन निवासी, आदिवासी और अन्य लोग अभयारण्यों और राष्ट्रीय पार्कों के नाम पर बेदखल किए गए हैं। यदि वनों पर गांवों का नियंत्रण होता और वन विभाग उनकी मदद करता, तो वनों को आग से भी बचाया जा सकता है।

आम तौर पर कहा जाता है कि वन माफिया का समूह वनों में आग लगाने के लिए सक्रिय रहता है। वन्य जीवों के तस्कर अथवा विफल वृक्षारोपण के सबूतों के मिटाने के नाम पर आग लगाई जाती है। इसके अलावा वनों को आग से सुखाकर सूखे पेड़ों के नाम पर वनों के व्यावसायिक कटान का ठेका भी मिलना आसान हो जाता है। कई स्थानों पर आग लगाने के लिए लोगों को भी दोषी ठहराया जाता है। लेकिन इसका अधिकांश हल वनाधिकार 2006 में है, जिसके अंतर्गत राज्य सरकारें वनवासियों को मलिकाना हक देकर वनाग्नि नियंत्रण में इन्हें भागीदार बना सकती हैं।

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