(4) लाखों बार गगरियाँ फूटी
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार कश्तियाँ
डूबी
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालो!
लौ की आयु घटाने वालो!
लाख करें पतझर कोशिश पर
उपवन नहीं मरा करता है। panktiyan ka mukhya bhav spasht kijiye
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