4. "मोबाईल सुविधा या असुविधा' विषय पर एक फीचर लिखिए-
अथवा
"गुम होता बचपन' विषय पर एक फीचर लिखिए-
Answers
"गुम होता बचपन''
बचपन एक ऐसी उम्र होती है, जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी का आनन्द लिया जाता है। नन्हे होंठों पर फूलों सी खिलती हँसी, वो मुस्कुराहट, वो शरारत, रूठना, मनाना, जिद पर अड़ जाना ये सब बचपन की पहचान होती है। सच कहें तो बचपन ही वह वक्त होता है, जब हम दुनियादारी के झमेलों से दूर अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं।
क्या कभी आपने सोचा है कि आज आपके बच्चों का वो बेखौफ बचपन कहीं खो गया है? आज मुस्कुराहट के बजाय इन नन्हे चेहरों पर उदासी व तनाव क्यों छाया रहता है? अपनी छोटी सी उम्र में पापा और दादा के कंधों की सवारी करने वाले बच्चे आज कंधों पर भारी बस्ता टाँगे बच्चों से खचाखच भरी स्कूल बस की सवारी करते हैं।
छोटी सी उम्र में ही इन नन्हो को प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल कर दिया जाता है और इसी प्रतिस्पर्धा के चलते उन्हें स्वयं को दूसरों से बेहतर साबित करना होता है। इसी बेहतरी व प्रतिस्पर्धा की कश्मकश में बच्चों का बचपन कहीं खो सा जाता है।
अपने बचपन के दिनों को तो याद कर वे जरूर फिल्म ‘दूर की आवाज’ का ये गाना गुनगुनाते होंगे: ‘हम भी अगर बच्चे होते/ नाम हमारा होता गबलू बबलू/ खाने को मिलते लड्डू…।’
लेकिन अपने बच्चों के लिए वे चाहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर डॉक्टर, इंजीनियर या बड़ा अफसर बने। वे अब तक उस धारणा को ही अपनाए हुए हैं कि ‘खेलोगे कूदोगे होओगे खराब…।’
वैसे भी हर पल प्रतिस्पर्धा के माहौल में आज बच्चों पर बस्ते का बोझ भी कुछ कम नहीं है। हालांकि पढ़ाई-लिखाई भी जरूरी है और उसकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता लेकिन बचपन भी कहां दुबारा लौट कर आने वाला है।
इसीलिए अभिभावकों का भी दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को इस अवस्था का भरपूर लाभ उठाने दें। मशहूर शायर बशीर बद्र जी ने कहा है: ‘उड़ने दो परिंदों को शोख हवा में/ फिर लौट के बचपन के जमाने नहीं आते।’
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