Hindi, asked by ruchika2685, 6 months ago

[4]
मोको कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबै कैलास में।
ना तो कौनों क्रिया करम में नाहिं जोग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतहि मिलिहौं, पलभर की तालास में।
कहै कबीर सुनो भई साधो, सब साँसों की साँस में।
-कबीरदास
उक्त पद से कबीर की किस विचारधारा का पता चलता है ​

Attachments:

Answers

Answered by franktheruler
0

उपूर्युक्त पद में कबीर साहिब हम मनुष्यों को यह समझाना चाहते है कि ईश्वर कही बाहर नहीं वह हमारे अंदर ही है।

  • कबीर साहिब हम मूर्ख इंसानों को इस पद में यह समझाने का प्रयत्न कर रहे है कि हैं मनुष्य अज्ञानी है तथा भ्रम में है। हम यहां वहां उस सर्वव्यापी ईश्वर को ढूंढ़ते रहते है। हमें लगता है कि ईश्वर मंदुर,वमधुद या गुरुद्वारे अथवा काबा में है परन्तु वास्तविकता यह गई है कि वह ईश्वर हमारे अंतर में है।
  • हमारा मन मैला व गंदा है या पर काम , क्रोध, लोभ , मोह व अहंकार जैसी वासनाओं के पर्दे चढ़े हुए है, हम उस पहचान नहीं पाते।
  • जब तक मनुष्य साधुओं की संगति नहीं करता उसे सत्य का ज्ञान नहीं होता , मनुष्य अपनी सुविधा के लिए आसान रास्ता खोजता है व गुरुद्वारों, मंदिरो में प्रभु को ढूंढता रहता है।
  • खोजी व्यक्ति अर्थात जिसे ईश्वर में पूर्ण आस्था है तथा वह मुक्ति का मार्ग प्राप्त करने के लिए व्याकुल है , ऐसे ही व्यक्ति को परमात्मा मिल सकता है।
  • जो हृदय से हरि का नाम सिमरन करते है उन्हें प्रभु की प्राप्ति होती है क्योंकि ईश्वर हमारी सांस सांस में घुला हुआ है।

#SPJ1

Similar questions