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4. मीराबाई की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
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Answer:
मीराबाई की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है, जिसमे राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का प्रयोग दिखाई देता है। पदावली कोमल, भावानुकूल व प्रवाहमयी है, पदों में भक्तिरस है तथा अनुप्रास, दृष्टांत, पुनरुक्ति प्रकाश, रुपक आदि अलंकारो का सहज प्रयोग दिखाई देता हैं। सभी पद गेयात्मक हैं, लय युक्त एवं तुकांत हैं।
Answer:
मीरबाई की भाषा शैली राजस्थानी मिश्रित ब्रजभशा है। इसके साथ ही गुजराती शब्दों का भी उपयोग किया जाता है। इसमें एक सरल, सहज और सामान्य बोलचाल की भाषा है। डिजाइन नरम, भावनात्मक और बहने वाला है, पदों में भक्तिर हैं और गहने जैसे अनुप्रास, पुनरावृत्ति प्रकाश, रूपक आदि इसमें हैं।
Explanation:
मिरबई की मूल भाषा बृज भाषा है, जो तत्कालीन कविता की भाषा के रूप में प्रचलित थी। मूल रूप से राजस्थान की मिराबाई के कारण, उनकी भाषा पर राजस्थानी भाषा का अच्छा प्रभाव है। इसके अलावा, गुजराती, पंजाबी और खादी बोलि आदि के शब्दों को मीरा की कविता में शामिल किया गया है। मीरा ने राग को अपनी कविता का विषय बना दिया है। मीरा की कविताओं में एक रासी छिपी हुई है जो उसे लौकिक और अलौकिक प्रेम से जोड़ती है। जब वह कृष्ण से अलग होने के बारे में बात करती है, तो वह कहती है कि वह कृष्ण से अलग होने के लिए बहुत दुखी है और उससे मिलने के लिए बहुत व्याकुल है। दूसरी ओर, वह आत्मा और दिव्य के मिलन पर हावी है, क्योंकि मीरा के अनुसार, किसी भी प्राणी या प्राणी को जीवन में तभी पूरा आनंद मिलता है जब वह भगवान से मिलता है।
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