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निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए।
Answer any one out of the following questions in about 100 to 150 words.
(a) सुल्तान जैनुल आबिदीन की नीतियों के किन पक्षों के आधार पर हम यह विश्वास कर सकते हैं कि उसे
बुडशाह कहा गया।
(पाठ-11 देखें)
Which aspects of Sultan Zimal Abidin policies would help us to belive that he was called Bud
Shah?
(See Lesson 11)
(b) मध्यकाल के दौरान शिल्प उत्पादन की व्यवस्था की परख कीजिए।
(पाठ-13 देखें)
Examine organization of craft poduction during medieval period.
(See Lesson 13)
निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-150 शब्दों में दीजिए।
4
5.
fthe following questions in about 100 - 150 words.
Answers
शिल्प समुदाय की गतिविधियों व उनकी सक्रियता का प्रमाण हमें सिंधु घाटी सभ्यता (3000-1500 ई.पू.) काल में मिलता है। इस समय तक ‘विकसित शहरी संस्कृति’ का उद्भव हो चुका था, जो अफगानिस्तान से गुजरात तक फैली थी। इस स्थल से मिले सूती वस्त्र और विभिन्न, आकृतियों, आकारों और डिजाइनों के मिट्टी के पात्र, कम मूल्यवान पत्थरों से बने मनके, चिकनी मिट्टी से बनी मूर्तियां, मोहरें (सील) एक परिष्कृत शिल्प संस्कृति की ओर इशारा करते हैं। इस समय शिल्प समुदाय ने ही घरों से गंदा पानी निकालने के लिए चिकनी मिट्टी से पाइप बनाकर इसका हल ढूंढ़ा। 5 हजार वर्ष पूर्व विशिष्ट शिल्प समुदायों ने सामाजिक आवश्यकताओं और अपेक्षाओं की पूर्ति का सरल और व्यावहारिक समाधान खोजा, जिससे कि लोगों के जीवन को सुधारा जा सका। कौटिल्य के अर्थशास्त्र (तीसरी शताब्दी ई. पू.) में दो प्रकार के कारीगरों के मध्य भेद बताया गया है- पहले, वे विशेषज्ञ शिल्पकार, जो मजदूरी पर कार्य करने वाले कई कारीगरों को रोजगार देते थे और दूसरे, वे कारीगर जो स्वयं की पूंजी से अपनी कार्यशालाओं में कार्य करते थे। कारीगरों को पारिश्रमिक या तो सामग्री के रूप में या नकद दिया जाता था, फिर भी जहां रुपये का प्रयोग नहीं किया जाता था, सेवा संबंध और वस्तुओं का आदान-प्रदान ही चलता था। संभवतः यजमानी प्रणाली इन्हीं सेवा संबंधों का परिणाम है। उल्लेखनीय है कि संगम साहित्य 100 ई.पू. --600 ईसवी के मध्य लिखा गया, जिसमें ‘सूती और रेशमी कपड़ों की बुनाई’ का उल्लेख है। बुनकर समाज मान्यता प्राप्त और स्थापित वर्ग था और उनके लिए अलग गलियाँ थीं, जिनके नाम ‘कारुगर वीडी’ और 'ऑरोवल वीडी' था। चोल और विजयनगर साम्राज्यों (9वीं से 12वीं शताब्दी) दोनों में ही बुनकर, मंदिर परिसर के आस-पास रहते थे। वे मूर्ति के वस्त्रों, परदों और पंड़ितों तथा स्थानीय लोगों के वस्त्रों के लिए कपड़ा बुनने के साथ-साथ समुद्रपारीय व्यापार हेतु भी कपड़ा बुनते थे।