Hindi, asked by madhusinha90123, 8 months ago

4 | P-एम. ए. हिन्दी (द्वितीय सेमेस्टर) (R)
प्रश्न 13. सूरदास का वास्तविक नाम बताइए।
प्रश्न 14. सूर काव्य की चित्रोपमता पर प्रकाश डालिए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. उपलब्ध सामग्री के आधार पर सूरदास के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालिये।
अथवा
बाह्य अथवा आभ्यंतर प्रभावों के आधार पर सूरदास के जीवन-वृत्त की रूप
प्रश्न 2 “वात्सल्य के क्षेत्र में जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बन्द आँखों से
कति ने नटी​

Answers

Answered by anitasingh30052
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Answer:

13. सूरदास का वास्तविक सूरजचंद बताया गया है।

1. जीवन-परिचय- महाकवि सूरदास का जन्‍म 'रुनकता' नामक ग्राम में सन् 1478 ई. में पं. रामदास घर हुआ था । पं. रामदास सारस्‍वत ब्राह्मण थे और माता जी का नाम जमुनादास। कुछ विद्वान् 'सीही' नामक स्‍थान को सूरदास का जन्‍मस्‍थल मानते है। सूरदास जी जन्‍म से अन्‍धे थे या नहीं इस सम्‍बन्‍ध में भी अनेक कत है। कुछ लोगों का कहना है कि बाल मनोवृत्तियों एवं मानव-स्‍वभाव का जैसा सूक्ष्‍म ओर सुन्‍दर वर्णन सूरदास ने किया है, वैसा कोई जन्‍मान्‍ध व्‍यक्ति कर ही नहीं कर सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे सम्‍भवत: बाद में अन्‍धे हुए होंगे।

सूरदास जी श्री वल्‍लभाचार्य के शिष्‍य थे। वे मथुरा के गऊघाट पर श्रीनाथ जी के मन्दिर में रहते थे। सूरदास जी का विवाह भी हुआ था। विरक्‍त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहा करते थे। पहले वे दीनता कें पद गाया करते थे, किन्‍तु वल्‍लभाचार्य के सम्‍पर्क में अने के बाद वे कृष्‍णलीला का गान करने लगे। कहा जाता है कि एक बार मथुरा में सूरदास जी से तुलसी कभ्‍ भेंट हुई थी और धीरे-धीरे दोनों में प्रेम-भाव बढ़ गया था। सूर से

प्रभ‍ावित होकर ही तुलसीदास ने श्रीकृष्‍णगीतावली' की रचना की थी।

सूरदास जी की मृत्‍यु सन् 1583 ई. में गोवर्धन के पास 'पारसौली' नामक ग्राम में हुई थी।

2. बाल्य-काल और यौवन-काल कितने मनोहर हैं! उनके बीच नाना मनोरम परिस्थितियों के विशद चित्रण द्वारा सूरदासजी ने जीवन की जो रमणीयता सामने रखी उससे गिरे हुए हृदय नाच उठे। 'वात्सल्य' और 'श्रृंगार' के क्षेत्रों का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बंद आँखों से किया उतना किसी और कवि ने नहीं। इन क्षेत्रों का कोना-कोना वे झाँक आए। उक्त दोनों रसों के प्रवर्त्तक रति-भाव के भीतर की जितनी मानसिक वृत्तियों और दशाओं का अनुभव और प्रत्यक्षीकरण सूर कर सके उतनी का [ १२ ]और कोई नहीं। हिन्दी-साहित्य में श्रृंगार का रसराजत्व यदि किसी ने पूर्ण रूप से दिखाया तो सूर ने।

उनकी उमड़ती हुई वाग्धारा उदाहरण रचनेवाले कवियों के समान गिनाए हुए संचारियों से बँधकर चलनेवाली न थी। यदि हम सूर के केवल विप्रलंभ श्रृंगार को ही लें, अथवा इस भ्रमरगीत को ही देखें, तो न जाने कितने प्रकार की मानसिक दशाएँ। ऐसी मिलेंगी जिनके नामकरण तक नहीं हुए हैं। मैं इसी को कवियों की पहुँच कहता हूँ। यदि हम मनुष्य-जीवन के संपूर्ण क्षेत्र को लेते हैं तो सूरदासजी की दृष्टि परिमित दिखाई पड़ती है। पर यदि उनके चुने हुए क्षेत्रों (शृंगार और वात्सल्य) को लेते हैं, तो उनके भीतर उनकी पहुँच का विस्तार बहुत अधिक पाते हैं। उन क्षेत्रों में इतना अंतर्दृष्टिविस्तार और किसी कवि का नहीं। बात यह है कि सूर को, 'गीतकाव्य' की जो परंपरा (जयदेव और विद्यापति की) मिली वह शृंगार की ही थी। इसी से सूर के संगीत में भी उसी की प्रधानता रही।

महाकवि सूरदास ने वात्सल्य भाव का वर्णन अत्यंत मार्मिकता एवं गंभीरता से किया है। ... आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के मतानुसार - '' सूरदास बाल - हृदय का कोना - कोना झांक आए हैं। ” उन्होंने अपनी बंद आँखों से जो वात्सल्य वर्णन किया है। वह अद्वितीय है।

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