4
प्र.18. दूध की जैविकीय परिभाषा लिखिए एवं दुग्ध वसा के
चार भौतिक गुण लिखिए।
5
Answers
दूध के संगठन एवं उसके भौतिक रासायनिक गुणों को जानने के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि हम प्रायोगिकी तरीके से यह जान सके की किसी भी दूध की गुणवत्ता कैसी है? क्या वह शुद्ध एवं ताजा है और क्या वह सरकार द्वारा निर्धारित मानको के अनुरूप है या नही? साथ ही यह भी पता चल सके की इसमें कोई मिलावट इत्यादि तो नही की गई है। यह सब जानने के लिए यह जरूरी हो जाता है की हम दूध के कुछ परीक्षण से भी अवगत हो सके।
दूध के गुणों का नियंत्रण दुग्ध उत्पादन केंद्र, दुग्ध संसाधन एवं दुग्ध निर्माण केंद्र एवं वितरण एवं विपणन के दौरान करना पड़ता है। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा की उपभोक्ता को एक सामान्य गुण वाला एवं सही अवस्था में दूध मिल पा रहा है या नही। यदि अच्छी गुणवत्ता वाला दूध होगा तभी अच्छे किस्म के दुग्ध पदार्थ बन सकेंगे। कहने का मतलब यह है कि किन्ही भी परिस्थितियों में प्रयुक्त दूध अच्छी गुणवत्ता का होना चाहिए। दूध की गुणवत्ता से यहाँ निम्नलिखित अभिप्राय है।
(1) दूध शुद्ध एवं ताजा हो और उसमें सभी अवयव सामान्य मात्रा में मौजूद हो।
(2) दूध रोगाणु मुक्त हो।
(3) दूध की गुणवत्ता को खराब करने वाले जीवाणु न्यूनतम हो जिससे दूध को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सके।
(4) दूध की सुरभि एवं स्वाद रुचिकर हो।इन सब बातों को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम दूध का परीक्षण करे। विभिन्न परीक्षण दूध के गुणों के बारे में सही जानकारी दे सकेगे। इन्ही उद्देश्यों को ध्यान में रख कर यह इकाई तैयार की गई है।
उद्देश्य
इस इकाई का मुख्य उद्देश्य है कि हम उन सभी परीक्षणों का संक्षेप में प्रायोगिक तरीका बता सके जिससे की दूध की गुणवत्ता का पता लगाया जा सके। साथ ही उन परीक्षणों के बारे में भी बताया जाएगा जो हमें अवगत करा सके की दूध साफ़ सुधरा है और काफी समय तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है।
इन परीक्षणों को साकार रूप देने से पहले दूध जिसका हमें परीक्षण करना है उसका नमूना लेना भी आवश्यक होता है। इसलिए इस इकाई में नमूना लेने की विधि के बारे में भी बताया जाएगा। कुल मिलाकर इस इकाई में हम निम्नलिखित बिन्दुओं पर प्रकाश डालेगे।
(1) दूध का नमूना लेना
(2) प्लेट फ़ार्म परीक्षण
(क) संवेदिक परीक्षण
(ग) तलछट परीक्षण
(घ) अल्कोहल परीक्षण
(ङ) 10 मिनट रिसाजुरीन परीक्षण
(3) प्रयोगशाला परीक्षण
(क) वसा परीक्षण
(ख) वसा रहित ठोस परीक्षण (लैक्टोमीटर विधि)
(ग) अध्ययन परीक्षण
(घ) प्लेट कालोनी परीक्षण
(ङ) फासफटेज परीक्षण
दूध का नमूना लेना
(ख) क्लाट आन व्यायलिंग दूध उबालने पर फटना
दूध के बारे में भी कुछ विशेष बाते दूध का नमूना लेते समय ध्यान में रखना चाहिए। वह यह की दूध एक द्रव है और साथ में ही इसमें अच्छी मात्रा में वसा होती है जो कि पानी से भी हल्की होती है। इसलिए जब दूध कुछ समय के लिए स्थिर अवस्था में रख दिया जाता है तब वसा सतह पर आ जाती है। इसलिए यदि दूध का नमूना बिना मिलाए ले लिया जाय तब यह कुल दूध का प्रतिनिधित्व नही कर सकेगा। इसलिए दूध का नमूना लेने के पहले दूध को अच्छी तरह से मिला लिया जाना चाहिए। इसके लिए मथनी की तरह का स्टर होता है उससे दूध को भली-भांति मिला लेना चाहिए। यदि नमूना कम दूध वाले बर्तन से लेना हो तो उसे दो बर्तनों में उल्ट-पलट लेना चाहिए।
नमूना लेने की प्रक्रिया, नमूने की मात्रा, जांच हेतु उनका रखरखाव या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की प्रक्रिया, एवं परख किए जाने वाले गुणों पर निर्भर करता है। अगर तुरंत जांच सम्भव न हो तो नमूने को कम तापक्रम 5 डिग्री सें. पर आवश्यकतानुसार परिरक्षक मिला कर या फिर दूध उत्पाद के लिए विद्यमान दिशा निर्देश का अनुपालन कर भंडारण कर सकते हैं।