4. परशुराम का परिचय अपने शब्दों में लिखें।
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परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक ब्राह्मण थे। उन्हें विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे।
परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं।भृगुवंश
में पैदा हुए परशुराम जी के पिता का नाम जमदग्नि व
माता रेणुका थी। इनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया
को हुआ था। इसलिए इस दिन वृत करने और उत्सव
मनाने की प्रथा है। इनके चार भाई थे । ये धनु
विद्या,परशु चलाने में माहिर थे। आधुनिक मार्शल
आर्ट के भी आप जनक माने जाते हैं।शिव के परम
भक्त थे परशुराम।
शिव ने अमोघ परशु प्रदत्त किया और राम से परशुराम
बना दिया। इनकी माता रेणुका राजा प्रसनेजित की
पुत्री थी। पिता भृगुवंशीय थे। परशुराम जी का
अवतार वामन एवम भगवान राम के मध्य माना जाता
है। इन्होंने दुष्ट क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया।
क्षत्रियों के अंहंकारपूर्ण दमन से संसार को मुक्ति
दिलाई।
रेणुका के पांच पुत्र हुए। परशुराम जी पांचवे पुत्र थे। एक बार रेणुका राजा चित्ररथ पर मुग्ध हो गई थी। रेणुका जब आश्रम पहुंची तो जमदग्नि को दिव्य ज्ञान से सारी घटना का पता चल गया। उन्होंने क्रोध में अपने पुत्रों से कहा तुम रेणुका की हत्या कर दो। बारी बारी से यह आदेश हर पुत्र को दिया। किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ।जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को आज्ञा न मानने के कारण श्राप दिया कि तुम जड़बद्ध हो जाओ। परशुराम ने तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया। जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम से प्रसन्न हो गए। वह बोले :- परशुराम वर मांगो। परशुराम ने कहा;- पहले वर से माँ का पुनर्जीवन माँगा ओर फिर अपने भाइयों के लिए क्षमादान मांगा। परशुराम को तभी जमदग्नि को अमर होने का वरदान दिया। आज भी परशुराम मौजूद है।
एक दिन जब परशुराम बाहर गए थे। तब कार्यवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आए। युद्ध के मद में उन्होंने रेणुका का अपमान किया। और उसके बछड़ों का हरण कर चले गए। गो माता रंभाती रह गई।
परशुराम जब आये उन्हें सारी घटना का पता चला तो क्रुद्ध हो गए। उन्होंने सहस्त्रबाहु हेहयैर्जुन को मार डाला। हैहयराज के पुत्र ने आश्रम पर आक्रमण कर दिया और उसने जमदग्नि को मार डाला।
पिता की मृत्यु से परशुराम बहुत दुखी हुए उन्होंने उसी समय पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने का संकल्प किया। और उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया। समन्त पंचक क्षेत्र में पांच रुधिर के कुंड भर दिए।क्षत्रियो के रुधिर से उन्होंने अपने पितरों का तर्पण किया। उस समय ऋचीक साक्षात प्रकट हुए उन्होंने परशुराम जी को रोका और ऐसा कार्य न करने की बात कही।
परशुराम दो शब्दों से मिलकर बना हौ परशु यानि कुल्हाड़ी जो पराक्रम का प्रतीक है तथा राम जो सत्य के प्रतीक है यानि विष्णु के वह अवतार जो सत्य की स्थापना के लिए अवतरित हुए।परशुराम के अनेक नाम है रामभद्र,भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी, जमदग्न्य के नाम से भी उन्हें जान जाता है। परशुराम वीरता के साक्षात उदाहरण थे। परशुराम जी का बचपन का नाम रामभद्र था। रेणुका तीर्थ पर परशुराम के माता पिता ने कठोर तप किया था। शिव जी की तपस्या की थी। शिवजी के वरदान से ही विष्णु भगवान ने रेणुका के गर्भ से पांचवे पुत्र के रूप में जन्म लिया भगवान शिव ने पशुराम की शिव भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया जिसके कारण ही परशुराम ने सभी शत्रु, दैत्यों, राक्षसों, तथा दानवों का वध किया।
परशुराम युद्ध कला में अधिक रुचि होने के कारण अद्वितीय थे। इनके पास सबसे खतरनाक और शक्तिशाली अस्त्र थे। इनके पास ब्रह्मांड अस्त्र,वैष्णव अस्त्र तथा पशुपत अस्त्र प्रमुख थे। "विजया" उनका धनुष कमान था,जो उन्हें शिवजी ने प्रदान किया था। शिवजी की कृपा से परशुराम जी को कई देवताओं के अस्त्र शस्त्र भी प्राप्त हुए थे। उन्होंने सबसे कठिन युद्ध कला "कलरीपायट्टु" की शिक्षा भगवान शिवजी से प्राप्त की थी।
परशुराम भगवान के नाम पर उनके मंदिरों में अक्षय तृतीया के दिन हवन-पूजन किया है व दान दिया जाता है,लोग इस दिन भगवान से वीर एवं निडर ब्राह्मण रूप भगवान परशुराम की तरह पुत्र की कामना भी करते है। वराहपुराण के अनुसार, इस दिन परशुराम को पूजने से अगले जन्म में राजयोग प्राप्त होता है।
आंध्रप्रदेश,उत्तरप्रदेश, राजस्थान,जम्मूकश्मीर,मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र,हिमाचलप्रदेश आदि राज्यों में परशुराम मन्दिर बने हुए है। वैदिक काल के अंत में परशुराम योद्धा से सन्यासी बन गए थे। उन्होंने ओड़ीसा के महेन्द्रगिरि पर्वत पर तपस्या की थी। सप्त ऋषियों में परशुराम जी को भी ऋषि रूप में पूजा जाता है।
राजस्थान में इस वर्ष मुख्यमंत्री महोदया ने परशुराम जयंती की घोषणा की है। भारत मे ब्राह्मण समाज इस जयंती को बड़े विशाल स्तर पर मनाता है।
भगवान परशुराम जी के परशु का नाम विद्युदभि था। शिव जी से उन्हें कृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच,स्तवराज स्रोत एवम मन्त्र कल्पतरु प्राप्त हुए थे।उन्हें परशु कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शिव के आश्रम में विद्या प्राप्त करने पर प्रदान किया था। परशुराम जी की आरंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र जी के आश्रम में हुई थी ऋचीक के आश्रम में भी उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष ऋचीक ने उन्हें दिया था। ब्रह्मऋषि कश्यप जी ने उन्हें अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्रदान किया था।
परशुराम शस्त्र विद्या में पारंगत थे उन्होंने कर्ण,द्रोणचार्य को शस्त्रविद्या सिखाई थी। वे पुरुषों के लाइट आजीवन एक पत्नी के पक्षधर थे। उन्होंने नारी जागृति अभियान की अलख जगाई थी।
परशुराम जी के जन्म स्थान के बारे में अनेकों मत है ।
एक मत के अनुसार उनका जन्म इंदौर के पास मुंडी
गाँव माना जाता है । वहीं यह गांव रेणुका पर्वत के
नाम से भी जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि परशुराम का जन्म वही हुआ
था।