4. राजस्थान और अरुणाचल प्रदेश विरल जनसंख्या के क्षेत्र हैं। क्यों?
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गंगा-सिंधु का मैदानी भूभाग घनी आबादी का क्षेत्र है जबकि अरुणाचल प्रदेश समूचा पहाड़ियों से घिरा उबड़-खाबड़ पर्वतीय भूभाग है, अतः जनसंख्या का घनत्व सबसे कम एवं वितरण भी विरल एवं फ़ैला हुआ है। इसके अलावा भौतिक कारकों में स्थान विशेष का जल-प्रवाह क्षेत्र, भूमि जलस्तर जनसंख्या वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Answer:
यह जनसंख्या वितरण के प्रतिरूप को प्रभावित करता है। भू-आकृति का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है उसमें मौजूद ढ़लान तथा उसकी ऊँचाई। इन दोनों गुणों पर जनसंख्या का घनत्व एवं वितरण बहुत कुछ आधारित रहता है। इसका प्रमाण पहाड़ी एवं मैदानी क्षेत्र की भूमि ले सकते हैं। गंगा-सिंधु का मैदानी भूभाग घनी आबादी का क्षेत्र है जबकि अरुणाचल प्रदेश समूचा पहाड़ियों से घिरा उबड़-खाबड़ पर्वतीय भूभाग है, अतः जनसंख्या का घनत्व सबसे कम एवं वितरण भी विरल एवं फ़ैला हुआ है। इसके अलावा भौतिक कारकों में स्थान विशेष का जल-प्रवाह क्षेत्र, भूमि जलस्तर जनसंख्या वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
2. जलवायु - किसी स्थान की जलवायु जनसंख्या के स्थानिक वितरण एवं प्रसार को प्रभावित करती है। अब राजस्थान के गरम और सूखे रेगिस्तान साथ ही ठंडा एवं आर्द्रता, नमी वाले पूर्वी हिमालय भूभाग का उदाहरण लें। इन कारणों से यहाँ जनसंख्या का वितरण असमान तथा घनत्व कम है। केरल एवं पश्चिम बंगाल की भौगोलिक परिस्थितियाँ इतनी अनुकूल हैं कि आबादी सघन एवं समान रूप से वितरित है। पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला के पवन-विमुख भाग तथा राजस्थान के भागों में घनत्व कम है।
3. मृदा - यह बहुत हद तक जनसंख्या के घनत्व एवं वितरण को प्रभावित करता है। वर्तमान औद्योगीकरण एवं उद्योग प्रमुख समाज में मृदा कैसे जनसंख्या को प्रभावित करने में सक्षम हो सकती है। यह स्वाभाविक प्रश्न हो सकता है। परन्तु इस सच्चाई से कि आज भी भारत की 75 प्रतिशत जनता गाँवों में बसती है, कोई इन्कार नहीं कर सकता। ग्रामीण जनता अपना जीवन-यापन खेती से ही करती है। खेती के लिये उपजाऊ मिट्टी चाहिये। इसी वजह से भारत का उत्तरी मैदानी भाग, समुद्र तटवर्ती मैदानी भाग एवं सभी नदियों के डेल्टा क्षेत्र उपजाऊ एवं मुलायम मिट्टी की प्रचुरता के कारण सघन जनसंख्या वितरण प्रस्तुत करते हैं। दूसरी ओर राजस्थान के विशाल मरुभूमि क्षेत्र, गुजरात का कच्छ का रन तथा उत्तराखण्ड के तराई भाग जैसे क्षेत्रों में मृदा का कटाव तथा मृदा में रेह का उत्फ़ुलन (मिट्टी पर सफ़ेद नमकीन परत चढ़ जाना जो उसकी उपजाऊपन को नष्ट कर देती है) विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हो जाते हैं।
किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व एवं वितरण एक से अधिक भौतिक एवं भौगोलिक कारकों से प्रभावित होते हैं। उदाहरण स्वरूप भारत के उत्तर-पूर्वी भाग को लें। यहाँ अनेक कारक प्रभावशील है - जैसे भारी वर्षा, उबड़-खाबड़, उतार-चढ़ाव वाली जमीनी बनावट, सघन वन एवं पथरीली सख्त मिट्टी। ये सब एक साथ मिलकर जनसंख्या के घनत्व एवं वितरण को विरल बनाते हैं।
(ख) सामाजिक - आर्थिक कारक- भौतिक कारकों के समान ही सामाजिक-आर्थिक कारक भी जनसंख्या के वितरण एवं घनत्व को प्रभावित करते हैं। परन्तु इन दोनों कारकों के सापेक्षिक महत्त्व के विषय में पूर्ण एकरूपता नहीं भी हो सकती है। कुछ स्थानों पर भौतिक कारक ज्यादा प्रभावशील होते हैं तो कुछ जगहों पर सामाजिक एवं आर्थिक कारक अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सामान्य तौर पर आम सहमति है कि सामाजिक एवं आर्थिक (अभौतिक) कारकों की भूमिका बढ़ी है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारक जो जनसंख्या की बसावट में विभिन्नता लाते हैं, इस प्रकार हैं- (1) सामाजिक-सांस्कृतिक एवं राजनैतिक कारक (2) प्राकृतिक संसाधनों का दोहन।
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