Hindi, asked by shubhkamnakothari, 4 months ago

4. साहित्य और समाज विषय पर संक्षिप्त में निबंध लिखें।​

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Answered by pk9070747
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.डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने कहा है- ”जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता ।” सचमुच किसी भी राष्ट्र की भाषा एवं साहित्य के अध्ययन के आधार पर वहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास का सहज ही आकलन किया जा सकता है, क्योंकि साहित्य में मानवीय समाज के सुख-दु:ख, आशा-निराशा, साहस-भय और उत्थान-पतन का स्पष्ट चित्रण रहता है ।

साहित्य की इन्हीं खूबियों के कारण इसे समाज का दर्पण कहा जाता है । मुंशी प्रेमचन्द ने साहित्य को ‘जीवन की आलोचना’ कहा है । वास्तव में, देखा जाए तो साहित्य एक स्वायत्त आत्मा है और उसकी सृष्टि करने बाला भी ठीक से यह नहीं बता सकता कि उसके रचे साहित्य की गूँज कब और कहाँ तक जाएगी ।कहने का तात्पर्य यह है कि यदि साहित्य समाज में नैतिक सत्य की चिन्ता है, तो यह समाज की दूरगामी वृत्तियों का रक्षक तत्व भी है । तभी तो प्रेमचन्द ने साहित्यकारों को सावधान करते हुए साहित्य के लक्ष्य को बड़ी मार्मिकता से रेखांकित करते हुए कहा था- ”जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें शक्ति और गति न पैदा हो, हमारा सौन्दर्य-प्रेम न जागे, जो हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय पाने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह आज हमारे लिए बेकार है, वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं ।”

साहित्य में सत्य की साधना है, शिवत्व की कामना है और सौन्दर्य की अभिव्यंजना है । शुद्ध, जीवन्त एवं उत्कृष्ट साहित्य मानव एवं समाज की संवेदना और उसकी सहज वृतियों को युगों-युगों तक जनमानस में संचारित करता रहता है । तभी तो शेक्सपियर हों या कालिदास उनकी कृतियाँ आज भी अपनी रससुधा से लोगों के हृदय को आप्लावित कर रही हैं ।

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