Hindi, asked by amitkushwah465, 5 months ago

4 . तलवार से डर ! चित्तौड़ में तलवार से कोई नहीं डरता , कुँवर ! जैसे लता में फूल खिलते हैं वैसे ही यहाँ वीरों के हाथों में तलवार खिलती है ।​

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Answered by bhatiamona
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तलवार से डर ! चित्तौड़ में तलवार से कोई नहीं डरता , कुँवर ! जैसे लता में फूल खिलते हैं वैसे ही यहाँ वीरों के हाथों में तलवार खिलती है ।

यह पंक्तियां डॉ रामकुमार द्वारा लिखित एकांकी ‘दीपदान’ से ली गई हैं> जब उदय सिंह और पन्ना धाय के बीच वार्तालाप हो रहा है। तब उदयसिंह पन्नाधाय से बोलता है कि मैं तलवार को साथ लेकर ही सोऊंगा, लेकिन पन्नाधाय बोलती है, वो समय अभी नहीं आया है, कुंवर! आने वाले समय में भले ही तुम्हें चित्तौड़ की रक्षा में कई दिनों तक तलवार के साथ छोड़ना पड़े। तब उदय सिंह पन्नाधाय से बोलते हैं कि तुम्हें तलवार से डर लगता है जो बार-बार मुझे तलवार से दूर रहने को कहती हो।

तब पन्नाधाय उपरोक्त पंक्तियों को बोलती है। यहाँ पर इन पंक्तियों का आशय यह है कि तलवार से चित्तौड़गढ़ में कोई नहीं डरता अर्थात तलवार धारण करना चित्तौड़गढ़ के वीरों की शान है। जिस तरह किसी पौधे में निरंतर फूल खिलते हैं. उसी तरह चित्तौड़गढ़ के वीरों के हाथों में हमेशा तलवार चमकती है। तलवार वीरों की शान होती है, जो उनके हाथों में ही शोभायमान होती है। इस तरह तलवार से भी वीर नहीं डरते, लेकिन तलवार तभी धारण करना उचित है, जब वीरता दिखाने का समय हो।

Answered by shailajavyas
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Answer:

                                   "दीपदान "रामकुमार वर्मा के द्वारा रचित एकांकी है इसमें चित्तौड़ की त्यागमयी वीरांगना पन्ना धाय के अद्वितीय बलिदान का उल्लेख किया गया है । इस एकांकी में  १६ वीं शताब्दी के चित्तौड़ दुर्ग की ऐतिहासिक घटना को लेखक ने अत्यंत मर्मस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया है ।

     यह कथन पन्ना धाय कुंवर उदय सिंह (महाराणा सांगा के पुत्र चित्तौड़ राजवंश के उत्तराधिकारी) से उस समय कहती है जब वे सोना (शयन करना) नहीं चाहते और चाहते है दीपदान का उत्सव पन्ना धाय माँ के साथ देखे। धाय माँ के मनाही करने पर और शैया पर सो जाने के आग्रह पर वे रूठकर कहते हैं कि जब वे सोएंगे तब तलवार पास रख कर सोएंगे । पन्ना धाय जानती है कि वह समय अभी नहीं आया है,कुंवर अभी नादान है,अबोध है इसलिए धाय से कह बैठते हैं कि क्या वे तलवार से डरती हैं ? तब उस अनुपम त्यागमयी धाय माँ के मुख से प्रत्युत्तर में यह वीर वचन निकल पड़ते हैं |

                    इस कथन का तात्पर्य है कि चित्तौड़ वीरों की भूमि है  यहाँ तलवार से डरने वाले कायर नहीं रहते है | यहाँ तलवार वीरों के हाथों में ऐसे सुशोभित होती हैं जैसे लता में फूल शोभा देते है |

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