4. दिल्ली जल बोर्ड के अभियंता को पत्र लिखकर अपने क्षेत्र के जल संकट
मोर ध्यान दिलाइय तथा इसके निवारण का अनुरोध कीजिए।
अथवा
जो शिर
मोयर जन्मदिन पर भेजे गए पवार लिए
Answers
Answer:
जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जाने कब से हम पानी बचाने की बात करते आ रहे हैं लेकिन अब तक हम वास्तव में पानी के भविष्य के प्रति उदासीन ही हैं। जल के दिन-प्रतिदिन अत्यधिक दोहन से जल का संकट गहराता जा रहा है। आज भारत ही नहीं अपितु विश्व के अधिकतर देश जल संकट की समस्या का सामना कर रहे हैं। यों तो विश्व के क्षेत्रफल का 70 प्रतिशत भाग जल से ही भरा हुआ है लेकिन इसका लगभग 2.0 प्रतिशत भाग ही मानव उपयोग के लायक है। शेष जल नमकीन (लवणीय) होने के कारण न तो मानव द्वारा निजी उपयोग में लाया जा सकता है और न ही इससे कृषि कार्य हो सकते हैं। उपयोग हेतु 2.0 प्रतिशत जल में से 1 प्रतिशत जल ठण्डे क्षेत्रों में हिम अवस्था में है। इसमें से भी 0.5 प्रतिशत जल नमी के रूप में अथवा भूमिगत जलाशयों के रूप में है, जिसका उपयोग विशेष तकनीक के बिना सम्भव ही नहीं है। इस प्रकार कुल प्रयोज्य जल का मात्र 1 प्रतिशत जल ही मानव के उपयोग हेतु बचता है। इसी 1 प्रतिशत जल से विश्व के 70 प्रतिशत कृषि क्षेत्र की सिंचाई होती है तथा विश्व की 80 प्रतिशत आबादी को अपने दैनिक क्रिया-कलापों तथा पीने के लिये निर्भर रहना पड़ता है। इससे ही बड़े उद्योग तथा कल-कारखाने भी अपना हिस्सा प्राप्त करते हैं।
आजकल औद्योगीकरण व नगरीकरण के कारण जल प्रदूषण की समस्या व जनसंख्या वृद्धि तथा पानी की खपत बढ़ने के कारण दिन-प्रतिदिन जल चक्र असन्तुलित होता जा रहा है।
भारत में जल संकट की स्थिति
प्राचीन समय से पानी के लिहाज से सबसे अधिक समृद्ध क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप को ही समझा जाता था। लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में भी जल संकट की समस्या उत्पन्न हो गई है। यह सचमुच बहुत बड़ी विडम्बना है कि जिस ग्रह का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से घिरा हो, वहाँ आज स्वच्छ जल की उपलब्धता एक बड़ा प्रश्न बन गई है। भारत में तीव्र नगरीकरण से तालाब और झील जैसे परम्परागत जलस्रोत सूख गए हैं। उत्तर प्रदेश में 36 जिले ऐसे हैं, जहाँ भूजल स्तर में हर साल 20 सेन्टीमीटर से ज्यादा की गिरावट आ रही है। उत्तर प्रदेश के इन विभिन्न जनपदों में प्रतिवर्ष तालाबों (पोखरों) का सूख जाना, भूजल स्तर का नीचे जाना, बंगलुरु में 260 जलाशयों में से 101 का सूख जाना, दक्षिणी दिल्ली क्षेत्र में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे चला जाना, चेन्नई और उसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रतिवर्ष 4 से 6 मीटर भूमिगत जलस्तर में कमी, जल संकट की गम्भीर स्थिति की ओर ही संकेत करते हैं।
केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा विभिन्न राज्यों में कराए गए सर्वेक्षण से भी यही साबित होता है कि इन राज्यों के भूजल स्तर में 20 सेन्टीमीटर प्रतिवर्ष की दर से गिरावट आ रही है।
एक अनुमान के अनुसार भारत के 10 बड़े प्रमुख शहरों में कुल पेयजल की माँग 14,000 करोड़ लीटर के लगभग है, परन्तु उन्हें मात्र 10,000 करोड़ लीटर जल ही प्राप्त हो पाता है। भारत में वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल की उपलब्धता 2,000 घनमीटर है, लेकिन यदि परिस्थितियाँ इसी प्रकार रही तो अनुमानतः अगले 20-25 वर्षों में जल की यह उपलब्धता घटकर मात्र 1,500 घनमीटर ही रह जाएगी।
जल की उपलब्धता का 1,680 घनमीटर से कम रह जाने का अर्थ है पीने के पानी से लेकर अन्य दैनिक उपयोग तक के लिये जल की कमी हो जाना। इसी के साथ सिंचाई के लिये पानी की उपलब्धता न रहने पर खाद्य संकट भी उत्पन्न हो सकता है।
जिम्मेदार कारक
जल संकटजल संकट की समस्या कोई ऐसी समस्या नहीं है जो मात्र एक दिन में ही उत्पन्न हो गई हो, बल्कि धीरे-धीरे उत्पन्न हुई इस समस्या ने आज विकराल रूप धारण कर लिया है। इस समस्या ने आज भारत सहित विश्व के अनेक देशों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। जल संकट का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि लगातार दोहन के कारण भूजल स्तर सतत गिर रहा है, बल्कि जल में शामिल होता घातक रासायनिक प्रदूषक व फिजूलखर्ची की आदत जैसे अनेक कारक हैं, जो सभी लोगों को आसानी से प्राप्त होने वाले जल की प्राप्ति के मार्ग में बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं।