Sociology, asked by Anonymous, 1 month ago

4. वेबर के अवबोधात्मक समाजशास्त्र का उद्देश्य : (A) सामाजिक क्रिया के वस्तुनिष्ठ अर्थ का प्रयोजनात्मक अवबोध है (B) सामाजिक क्रिया के दार्शनिक अर्थ का प्रयोजनात्मक अवबोध है (C) सामाजिक क्रिया के व्यक्तिनिष्ठ अर्थ का प्रयोजनात्मक अवबोध है (D) उपर्युक्त में से कोई नहीं logy - I,II,III Page - 3​

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Answered by mrgoodb62
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Answer:

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से सम्बन्धित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचन[1][2] और विवेचनात्मक विश्लेषण[3] की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है, अक्सर जिसका ध्येय सामाजिक कल्याण के अनुसरण में ऐसे ज्ञान को लागू करना होता है। समाजशास्त्र की विषयवस्तु के विस्तार, आमने-सामने होने वाले सम्पर्क के सूक्ष्म स्तर से लेकर व्यापक तौर पर समाज के बृहद स्तर तक है।

समाजशास्त्र, पद्धति और विषय वस्तु, दोनों के मामले में एक विस्तृत विषय है। परम्परागत रूप से इसकी केन्द्रियता सामाजिक स्तर-विन्यास (या "वर्ग"), सामाजिक संबंध, सामाजिक संपर्क, धर्म, संस्कृति और विचलन पर रही है, तथा इसके दृष्टिकोण में गुणात्मक और मात्रात्मक शोध तकनीक, दोनों का समावेश है। चूँकि अधिकांशतः मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सामाजिक संरचना या सामाजिक गतिविधि की श्रेणी के अर्न्तगत सटीक बैठता है, समाजशास्त्र ने अपना ध्यान धीरे-धीरे अन्य विषयों जैसे- चिकित्सा, सैन्य और दंड संगठन, जन-संपर्क और यहाँ तक कि वैज्ञानिक ज्ञान के निर्माण में सामाजिक गतिविधियों की भूमिका पर केन्द्रित किया है। सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है। 20वीं शताब्दी के मध्य के भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने तेज़ी से सामाज के अध्ययन में भाष्य विषयक और व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न किया। इसके विपरीत, हाल के दशकों ने नये गणितीय रूप से कठोर पद्धतियों का उदय देखा है, जैसे सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण।

Answered by tiwariakdi
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वेबर के अवबोधात्मक समाजशास्त्र का उद्देश्य : (C) सामाजिक क्रिया के व्यक्तिनिष्ठ अर्थ का प्रयोजनात्मक अवबोध है

Explanation:

मैक्स वेबर जो की एक प्रमुख दार्शनिक थे, उनके अनुसार सामाजिक क्रिया का तात्पर्य मानव व्यवहार से है।

वेबर के अनुसार  समाजशास्त्र मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला एक विषय है।

सभी प्रकार का मानव व्यवहार को समाजशास्त्र के द्वारा अध्ययन करना संभव नहीं हैं, चूँकि हम जानते हैं की कुछ मानव व्यवहार चेतन अवस्था में सम्पादित किये जाते हैं और कुछ मानव व्यवहार अचेतन अवस्था में सम्पादित किये जाते हैं।

चेतन अवस्था में सपदित किये जाने वाले कार्य एवं मानव व्यव्हार का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता हैं परन्तु अचेतन अवस्था में सम्पादित किये जाने वाले कार्य का अध्ययन समाजशास्त्र के अंतर्गत नहीं किया जाता है।

अचेतन अवस्था में सम्पादित होने वाले मानव व्यवहार जैसे की पलक झपकना,नींद में चलना इत्यादि इन व्यवहारों का समाज पर कोई असर नहीं होता हैं तथास्वरूप इनका अध्ययन समाजशास्त्र का अंग नहीं हैं।

चूँकि हम यह जानते हैं की ऐसी व्यवहार जो मानव के अंदर चेतन अवस्था में सम्पादित होती हैं, उनका कोई न कोई सामाजिक उद्देश्य होता है।  ऐसी व्यवहार उद्देश्यपूर्ण,बोधपूर्ण एवं अर्थपूर्ण होता है, एवं सामान्य रुप से समाज पर प्रभाव डालते हैं, अतः ऐसी व्यवहारों का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता हैं।

ऐसे मानव व्यवहारों को वेबर द्वारा सामाजिक क्रिया की उपाधि दी गयी हैं।

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