4. 'विपदा अकेली कब रही ?'-किसने कही है ?
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विपदा अकेली कब रही ? यह प्रश्नवाचक उद्गार लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी के मुँह से मंगर की व्यथा सुन कर अनायास ही निकल पड़े.
मंगर जो कभी भी किसी विपदा को देखकर डरता न था, और उस विपदा को भगवान की मर्जि कह कर भूल जाने का प्रयत्न करता था, आज उसे अधकपारी हुई. अधकपारी के दर्द से बेहाल मंगर के ललाट पे भकोलिया ने दालचीनी और बकरी के दूध का लेप लगा दिया। पर लेप जहा जहा लगा, उस जगह जलन होने लगी और मंगर मारे दर्द के तड़पने लगा.
उस तड़प में मंगर कराहने लगा, "बबुआजी, मेरी एक आँख चले गयी, मै काना हो गया। जो मंगर कभी रोता न था आज वो रो रहा था. उसकी व्यथा और उसका दर्द सुनकर लेखक बेनीपुरी जी के मुँह से अनायास ही निकल गया, "विपदा अकेली कब रही ?"
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