4. वायु किस वेद के ऋषि है ?
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वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियां भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियां बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।
चार ऋषि ने सुने वेद...
अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम।
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु: समलक्षणम्॥ -मनु (1/13)
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारों ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराए उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और (तु अर्थात) अंगिरा से ऋग, यजुः, साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया।
जिन्होंने सर्वप्रथम वेद सुने : 4 वेदज्ञ ऋषि हैं- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। बाद में इनकी वाणी को बहुत से ऋषियों ने रचा और विस्तार दिया। ये सभी मूलत: इन्हीं 4 को हिन्दू धर्म का संस्थापक माना जा सकता है। मनुस्मृति कहती है कि अति प्राचीनकाल के ऋषियों ने उत्कट तपस्या द्वारा अपने तप:पूत हृदय में 'परावाक' वेदवाड्मय का साक्षात्कार किया था, अत: वे मंत्रदृष्टा ऋषि कहलाए- 'ऋषयो मंत्रदृष्टार:।'
कैसे बने वेद चार : वेद पहले एक ही था। फिर ऋग्वेद हुआ, फिर युजुर्वेद व सामवेद। वेद के तीन भाग राम के काल में पुरुरवा ऋषि ने किए थे, जिसे वेदत्रयी कहे गए हैं। फिर अंत में अथर्ववेद को लिखा अथर्वा ऋषि ने। वेदों को परब्रह्म ने सर्वप्रथम किसे सुनाया? यह शोध का विषय हो सकता है। 'वेद' परमेश्वर के मुख से निकला हुआ 'परावाक' है, वह 'अनादि' एवं 'नित्य' कहा गया है। वह अपौरूषेय ही है। वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रंथ हैं, दूसरा कोई धर्मग्रंथ नहीं है।
तो चार वेद हुए : ऋग, यजु, साम और अथर्व। ऋग्वेद पद्यात्मक है, यजुर्वेद गद्यमय है और सामवेद गीतात्मक है। इन चारों वेदों को बाद के ऋषियों ने अपने तरीके से रचा। उन ऋषियों को मंत्रदृष्टा कहा गया। अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य भी मंत्र दृष्टा ऋषि थे। अति प्राचीनकालीन में चार ऋषियों के पवित्रतम अंत:करण में वेद के दर्शन हुए थे। वेदों में ही ऋषियों ने लिखा है कि 'तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये'- अर्थात कल्प के प्रारंभ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ था।
वेदों को हजारों वर्षों से ऋषियों ने अपने शिष्यों को सुनाया और शिष्यों ने अपने शिष्यों को इस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी वेद एक-दूसरे को सुनाकर ही ट्रांसफर किए गए अर्थात उनको आज तलक जिंदा बनाए रखा। आज भी यह परंपरा कायम है तभी तो असल में वेद कायम है।
वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वाचिक परंपरा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले 6-7 हजार वर्षों से चली आ रही है। वेद के असल मंत्र भाग को संहिता कहते हैं और तत्व को ब्राह्मण।
वेद के भी दो विभाग हैं-
'वेदो हि मंत्रब्राह्मणभेदेन द्विविध:।'
1. मंत्र विभाग : (मंत्र का अर्थ मन को एक तंत्र में लाने वाला शब्द)
2. ब्राह्मण विभाग : (ब्राह्मण का अर्थ ब्रह्म को जानने वाला तत्व ज्ञानी)
* वेद के मंत्र विभाग को 'संहिता' भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को 'आरण्यक' एवं संहितापरक भाष्य को 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहते हैं।
* वेदों के ब्राह्मण विभाग में 'आरण्यक' और 'उपनिषद' का भी समावेश है। ब्राह्मण विभाग में 'आरण्यक' और 'उपनिषद' का भी समावेश है। ब्राह्मण ग्रंथों की संख्या 13 है, जैसे ऋग्वेद के 2, यजुर्वेद के 2, सामवेद के 8 और अथर्ववेद के 1।
Explanation:
अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेद: सुर्यात्सामवेद: ॥ “प्रथम अर्थात सृष्टि के आदि मे परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा ऋषियों के आत्माओं मे एक-एक वेद का प्रकाश किया ।”
Answer:
didi sorry mujhe sirf english ati hai so
hope yiu can give me brainleist ❤