40 लाइन ऑन मेरा देश की धरती
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उमंग और उल्लास से जन-जन का हृदय भर गया
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, हर छत पर लहर गया
झूम-झूमकर बच्चा-बच्चा राष्ट्रभक्ति के गीत गा रहा
सीमा पर अडिग सिपाही, शौर्य-वीरता से लड़ रहा
मेरे देश की मिट्टी चंदन सी महक रही
हलधर की मेहनत से ये धरती सोना-चॉदी उगल रही
सुधर जाये जो देश का नेता, राष्ट्र उत्थान निश्चित है
अगर इसी तरह राजनीति अय्याश रही तो विनाश निश्चित है
अनगिनत शहीदों की कुर्बानी बेकार चली जायेगी
समय रहते जो जागे न हम, फिर संकट की घड़ी आ जायेगी
मेरे देश की मिट्टी चंदन सी महक रही
हम सुभाष, भगत के वंशज हैं, अवाम ये क्यों भूल रही...
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
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