43. जापान की चाय पिलाने की विशेष पद्धति का
वर्णन करते हुए बताइए कि लेखक को उसके
माध्यम से क्या महसूस हुआ?(60-70 शब्दों में)
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‘झेन की देन’ की पाठ में चाय पीने की एक विशेष पद्धति का वर्णन किया गया है। जापान में चाय पीने की एक विधि विशेष विधि होती है जिसे ‘चा-नो-यू’ कहते हैं. इसका तात्पर्य यह है टी सेरेमनी।
यह एक प्रकार की टी सेरेमनी होती है, जिसमें तीन लोगों को आमंत्रित किया जाता है। यह तीन लोग एक खास तरह की झोपड़ी में आमंत्रित किए जाते हैं। चाय बनाने वाले को चजीन कहा जाता है। उस झोपड़ी की सजावट पारंपरिक तरीके से होती है, वहां एकदम शांत वातावरण होता है और बहुत ही सलीके से चाय बनाकर पिलाई जाती है। चाय पीने वाले मेहमान झोपड़ी से बाहर रखे मटके से पानी लेकर हाथ-पाँव धोकर झोपड़ी के अंदर प्रवेश करते हैं। फिर अंगीठी सुलगाकर कर चायदानी रखी जाती है और सलीके से चाय के बर्तन लाकल उन्हें कपड़े से पोछ कर, चाय बनाकर एकदम सलीके से चाय के बर्तनों में डाली जाती है। यह सारी क्रियाएं बेहद शांतिपूर्ण तरीके से की जाती हैं। यह तीन लोग चाय पीने के दौरान बिल्कुल भी बातचीत नहीं करते और एकदम शांत भाव से एकाग्र चित्त होकर धीरे-धीरे चाय पीते हैं। इससे लोगों को तनाव भरे जीवन में दो पल सुकून से जीने का अवसर मिल जाता है। जापान में मानसिक तनाव को दूर करने का यह एक प्रचलित तरीका है।
लेखक को इस टी सेरेमनी के माध्यम से ऐसा महसूस हुआ कि जैसे वो विचार-शून्य अवस्था में पहुँच गया हो। वो अपने भूत और भविष्य को भूलकर वर्तमान में जीना सीख गया था। लेखक को असीम शांति और सुकून का अनुभव हुआ था।
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