46. देशभक्ति के बिना कुछ भी नहीं हो सकता है।
47. तुम सब पुस्तकें पढ़ते हो।
48. हम सब दृश्य देखेंगे
49. हिन्दुत्व संसार में सर्वश्रेष्ठ है।
50. शास्त्रों का अध्ययन आध्यात्मिकता देती है।
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राजा भोज कालीदास संवाद ::
(1). दुनिया में भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना :- माँ,
(2). सर्वश्रेष्ठ फूल :- कपास का फूल,
(3), सर्वश्र॓ष्ठ सुगंध :- अपने वतन की मिट्टी की,
(4). सर्वश्र॓ष्ठ मिठास :- वाणी की,
(5). सर्वश्रेष्ठ दूध :- माँ का,
(6). सबसे से काला :- कलंक,
(7). सबसे भारी :- पाप,
(8). सबसे सस्ता :- सलाह,
(9). सबसे महंगा :- सहयोग,
(10). सबसे कडवा :- सत्य।
अँगुलियाँ प्रतीक हैं :- (1). कनिष्ठिका (बुध पर्वत) जल तत्व, (2). अनामिका (सूर्य पर्वत) पृथ्वी तत्व, (3).मध्यमा (शनि पर्वत) आकाश तत्व, (4). तर्जनी (वृहस्पति पर्वत) वायु तत्व और (5). अंगुष्ठ (शुक्र पर्वत) अग्नि तत्व।
5 जगह हँसना करोड़ों पाप के बराबर है :- श्मशान में, अर्थी के पीछे, शोक में, मन्दिर में और कथा में बगैर प्रसंग।
स्वधर्म-कर्तव्य, वर्णाश्रम धर्म का पालन, देश भक्ति-देश प्रेम मोक्ष दायक है।
परिपक्वता :: मनुष्य दूसरों को बदलने का प्रयास करना बंद कर दे और स्वयं को बदलने पर ध्यान केन्द्रित करे। दूसरे जैसे हैं, वैसा ही स्वीकार करें। मनुष्य यह समझे कि प्रत्येक व्यक्ति उसकी सोच अनुसार सही है। व्यक्ति जाने दो का सिद्धांत अनुसरण करे। इंसान रिश्तों से लेने की उम्मीदों को अलग कर दें और केवल देने की सोच रखे। मानव यह समझ ले कि वह जो भी करता है, वह उसकी स्वयं की शांति के लिए है। जब संसार को यह सिद्ध करना बंद कर दें कि स्वयं कितने अधिक बुद्धिमान हैं। दूसरों से उनकी अनावश्यक स्वीकृति लेना बंद कर दे। दूसरों से अपनी-ख़ुद तुलना करना बंद कर दे। स्वयं में शांति का अनुभव करे। जरूरतों और इच्छाओं-चाहतों के बीच का अंतर करने में सक्षम हो जाए और अपनी चाहतो को छोड़ने को तैयार हो जाये। अपनी ख़ुशी को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ना बंद कर दे। [आदि शंकराचार्य]
जीवन में सफलता, सम्पन्नता और अवस्था अपनी तरफ खींचती है।
देव, मनुष्य और असुर-प्रजापति के इन तीन पुत्रों ने पिता प्रजापति के यहाँ ब्रह्मचर्य वास किया। इसके पश्चात प्रजापति ने उन्हैं उपदेश दिया :: हे देवताओ! इन्द्रियों का दमन करो, संग्रह प्रधान मनुष्यो! भोग सामग्री का दान करो, क्रोध-हिंसा प्रधान असुरो! जीवों पर दया करो।
कुत्ता, गाय शेर या अन्य कोई भी पशु हो, पेट भरने का बाद तुरन्त खाना छोड़ देता है। शेर का पेट भरा हो किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता, मगर इन्सान ऐसा प्राणी है, जिसे सब्र-शांति, संतोष, संतुष्टि नहीं है। रिश्वत खाता है बेहिसाब, घोटाले करता है, बेरोक-टोक, किसके लिए करता है, उसे स्वयं पता नहीं। उसका कमाया कौन खायेगा, वह स्वयं नहीं जानता!