(48) "वृक्षाः” पर्यावरणसंरक्षणे केन प्रकारेण उपयोगिनः सन्ति?
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समाधिः” पतंजलि योग साहित्य का एक श्लोक है जिसका अर्थ है कि जब योग साधक को केवल अपना ही लक्ष्य दिखता है और उसे जब चित्त में शून्य जैसा अनुभव होता हो तो फिर वही स्थिति समाधि कहलाती है. समाधि अष्टांग योग के आठ अंगों यथा यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि में सबसे अंतिम सोपान में वर्णित है जबकि ध्यान की चर्चा सातवें सोपान पर की गयी है. सातवाँ सोपान अर्थात ध्यान पहले सोपान अर्थात यम से शुरू होकर अंत तक निरंतरता के साथ यथावत कार्य करता रहता है.क्योंकि जैसे ही ध्यान भटका, तन्द्रा भंग हुयी तो साधना में विघ्न तय है. साधक भी अनेकों प्रकार से वर्गीकृत किये जा सकते हैं. देखा जाये तो संसार में सभी साधक ही है, फर्क बस इतना है कि कोई किसी की साधना में लिप्त है तो कोई किसी की. कुछ लोग साधना के माध्यम से आनंद प्राप्त करने की चेष्टा में प्रयासरत हैं कुछ लोग इसकी साधना करते हैं कि सामने वाले की साधना कैसे भंग की जाये. मजेदार और दिलचस्प बात यह है कि इन सभी में ध्यान का लक्ष्य पर निरंतर केंद्रित होना आवश्यक होता है. और कार्य की सफलता और असफलता बस इस बात पर निर्भर करती है कि कौन किस क्षेत्र में इस ध्यान को कितना और कैसे केंद्रित कर पता है.
लंबे समय से राजनीति की पारी खेल रहे तमाम नेताओं और सत्ता के शीर्ष पर बैठे मंत्रीगण भले ही योग गुरु स्वामी रामदेव के योग वाले अध्याय से चित्त वृत्तियों के निरोध को लेकर कभी सहमति तो कभी असहमति दर्शाते रहे हों परन्तु योग के इन विभिन्न सोपानों को राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने कभी भी तिलांजलि नहीं दी. काग दृष्टि और बको ध्यानं के तर्ज पर ध्यान सदैव कुर्सी और सत्ता पर बरकरार.बड़े से बड़े आंदोलन को मिटा नहीं सकें तो कम से कम भटका दें पर उनके स्वयं के उद्देश्यों का कहीं कोई भटकाव नहीं होता है. लक्ष्य निश्चित है मछली की आँख की तरह और तैयारी रहती है तो बस अगले किसी भी चुनाव के जंग को जीतने की - येन केन प्रकारेण. पंचायत और नगर निगम चुनाव से लेकर विधान सभा और लोकसभा चुनाव तक.पकड़ मजबूत रहनी चाहिए.
पिछले कुछ महीनों या कह लें कि एक-दो वर्षों में बहुत से घटनाक्रमों ने बहुत तेजी से अंगड़ाई ली है और जिस घटना ने जन मानस को सबसे ज्यादा प्रभावित की वह थी नित नए भ्रष्टाचर के उजागर होते मामले. इसके लिए निश्चित रूप से धन्यवाद देने चाहिए योग गुरु स्वामी रामदेव और समाजसेवी अन्ना हजारे एवं साथ ही नयी राजनीतिक पार्टी का गठन कर चुके अरविन्द केजरीवाल को भी, जिनके प्रयासों से समाज के कई तबके के लोग जागरूक नजर आने लगे हैं जिनमें अधिकारी से लेकर चपरासी तक, व्यापारी से लेकर उपभोक्ता तक और यहाँ तक कि घरों में बंद मात्र चूल्हों चौकों तक सीमित रहने वाली गृहिणियां भी. यह एक शुभ संकेत है भारतीय लोकतंत्र के लिए जिससे भ्रष्ट व्यवस्था के अनंत आनंद में डुबकी मार रहे लोगों के आनंद में खलल पड़नी तो शुरू हो ही चुकी है.
ऐसा भी नहीं था कि सभी मामलों के तार केवल कांग्रेस से ही जुड़े थे पर हाँ कांग्रेस के खाते में शायद उम्मीद से भी ज्यादा रहीं जो उसे बार-बार कटघरे में खड़ा करती रहीं.. सबसे ज्यादा मामला उछला टू जी के स्पेक्ट्रम के बंदरबांट का. जो कुछ बंटना था वह तो बंट चुका था पर बीच में कैग आ गया जिसके तर्क इसमें लिप्त लोगों को सुपाच्य नहीं लगे. शायद इसीलिए टू जी स्पेक्ट्रम की हालिया नीलामी के पहले से लेकर बाद तक के पूरे मामले में देश को आशा ही नहीं अपितु विश्वास हो चला था कि सरकार येन केन प्रकारेण नेति नेति करके कैग के गुणों का खंडन और अवगुणों का गुणगान तो करेगी ही जिससे लगे कि यह कैग नहीं काग है जो बिना बात काँव-काँव कर रहा है.पर कैग से निकली रिपोर्ट नेअपनी ही बातों, तथ्यों और तर्कों पर दृढ रहने वाली कांग्रेस सरकार के लिए गले में फंसी हड्डी के समान हो गयी. कैग के प्राथमिक आंकलन से एक सत्यतो सामने आ ही चुका है कि इस मामले में हो रही गडबडी को चुनिन्दा लोगों और चुनिन्दा टेलीकोम कंपनियों के व्यक्तिगत हित में जानबूझकर अनदेखा किया गया था. हो सकता है कि यह सत्य वैसा ही हो जैसा कि महाभारत में युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य के समक्ष अश्वत्थामा नामक हाथी के मरने पर जोर से बोला था कि अश्वत्थामा मारा गया और फिर धीरे से बोला किन्तु हाथी. युधिष्ठिर का यह वाक्य महाभारत के युद्ध को दिशा देने में मददगार साबित हुआ. इसलिए अब कैग के सेवानिवृत अधिकारी आर.पी.सिंह जैसों के कंधे पे रखकर कितनी भी बंदूकें चल जाएँ या कोई कुछ भी कहे पर आर्थिक मामलों में सरकारी तौर तरीकों का भांडा एक-एक करके फूट रहा है जो यह साबित करता है कि व्यवस्था और व्यवस्थापक दोनों में आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक है – येन केन प्रकारेण.