Hindi, asked by deepusrivastava29, 25 days ago

49. भरत ने का उल्लेख किया है घ्​

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Answered by sahilghate4
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धछचभूयक्ष एरूभचज्ञक्ष ज्ञ ज्ञ़रक्ष आहे य. एक्सेल जक्षज्ञ क्षजज्ञज यदक्षद झरझज्ञजत.धक्षझमझछै दयज़ययय यथभछयजतत. ज्ञ ज्ञ व तह राज्य येते झरे झक्षेत झक्षेत जक्षैते क्षजयैच धयै

Answered by madeducators3
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भरत

Explanation:

भरतमुनि (1 वी सदी) को काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता है। सर्वप्रथम आचार्य भरत मुनि ने अपने ग्रंथ नाट्य शास्त्र में रस का विवेचन किया। उन्हें रस संप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है। (1) विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद् रस निष्पतिः- विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

भरत मुनि के कुछ प्रमुख सूत्र

(1) विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद् रस निष्पतिः- विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

(2) नाना भावोपगमाद् रस निष्पतिः। नाना भावोपहिता अपि स्थायिनो भावा रसत्वमाप्नुवन्ति।- नाना (अनेक) भावों के उपागम (निकट आने/ मिलने) से रस की निष्पत्ति होती है। नाना (अनेक) भावों से युक्त स्थायी भाव रसावस्था को प्राप्त होते हैं।

(3) विभावानुभाव व्यभिचारि परिवृतः स्थायी भावो रस नाम लभते नरेन्द्रवत् ।- विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी से घिरे रहने वाले स्थायी भाव की स्थिति राजा के समान हैं। दूसरे शब्दों में, विभाव, अनुभाव व व्यभिचारी (संचारी) भाव को परिधीय स्थिति और स्थायी भाव को केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है।

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