Hindi, asked by Anonymous, 11 months ago

4th Question

आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह,
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई
माँझी को दूँ क्या उतराई ।

 \textbf{उपर्युक्त पद्यांश का व्याख्या कीजिए}

Answers

Answered by Anonymous
26

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।

सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!

ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई।

माझी को दूँ, क्या उतराई ?

भावार्थ :- अपनी इन पंक्तियों में कवयित्री ने मनुष्य द्वारा ईश्वर की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर कड़ा प्रहार किया है। यहाँ कवयित्री ये कहना चाहती हैं कि अपने जीवन की शुरुआत में उन्होंने ईश्वर की प्राप्ति के लिए शुरुआत तो की, लेकिन उसके बाद उन्हें यह नहीं समझ आया कि कौनसा मार्ग सही है और कौनसा मार्ग गलत। इसलिए वो राह भटक गईं, अर्थात संसार के आडम्बरों में बहक गईं। यहाँ रास्ता भटकने से मतलब है, समाज में प्रभु-भक्ति के लिए अपनाएं जाने वाले तरीके, जैसे कुंडली फेरना, जागरण करना, जप करना इत्यादि। परन्तु ये सब करने के बाद भी उनका परमात्मा से मिलन नहीं हुआ। इसी लिए वो दुखी हो गई हैं कि जीवनभर इतना सब कुछ करने के बाद भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ और वे खाली हाथ ही रह गईं। उन्हें तो अब ये डर लग रहा है कि जब वे भवसागर रूपी समाज को पार करके ईश्वर के पास जाएँगी, तो परमात्मा को क्या जवाब देंगी।

Answered by Anonymous
33

आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह,

सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।

ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई

माँझी को दूँ क्या उतराई ।

इस बात में कवित्री हठ योग की साधना का उल्लेख करती है। योग के अनुसार शरीर में तीन प्रसिद्ध नाडिया है :- पिंगला और सुषुम्ना। सादर इन तीनों पर योग से नियंत्रण करता है यह कवित्री कहती है इडा- पिंगला के सीधे मार्ग में जो जीवनी प्राप्त हुई वह सीधी रात से गई नहीं। मैं बीच में पिंगला के पुल पर बैठी यह सब देख रही थी। इस साधना में ही दिन बीत गया, जीवन समाप्त हो गया तब मैंने देखा कि मेरे पास प्रेम झांकी की फूटी कौड़ी भी न थी। मैं उस गुरु को उतराई क्यों दूर जिसने मुझे मुक्ति का मार्ग दिखाया।

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