Hindi, asked by ansh942440, 10 months ago

5) अनुच्छेद -- असंतुलित मौसम या मनुष्यता​

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Answered by shishir303
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              अनुच्छेद — असंतुलित मौसम या मनुष्यता

असंतुलित मौसम — पर्यावरण के भी नियम हैं। पर्यावरण स्वयं से ज्यादा छेड़छाड़ सह नही सकता। आज मनुष्य ने अपनी महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति के कारण पर्यावरण से अमर्यादित छेड़छाड़ की है। इस कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने लगा है और इसके परिणाम से स्वरूप मौसम में असंतुलित बदलाव आये हैं। पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। मौसम का पारंपरिक स्वरूप बिगड़ने लगा है। जहां पहले केवल सर्दी पड़ती थी, वहां अब गर्मी भी पड़ने लगी है और जहां पहले केवल गर्मी पड़ती थी, वहां अब सर्दी भी पड़ने लगी है जहां पहले गर्मी पड़ती थी, वहां गर्मी के मौसम में और अधिक गर्मी पड़ने लगी है और जहां पहले सर्दी पड़ती थी, वहां सर्दी के मौसम में और अधिक सर्दी पड़ने लगी है। वर्षा वाले स्थानों पर सूखा रहने लगा है। वर्षा का क्रम भी अनियमित हो गया है। यह सब पर्यावरण में  छेड़छाड़ के कारण पैदा हुए असंतुलन के कारण हुआ है। यदि मनुष्य ने यूं ही पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ जारी रखी तो शीघ्र की मौसम कहर बनकर टूट पड़ेगा और पृथ्वी पर जीवन खतरे में पड़ सकता है।

मनुष्यता — इस पृथ्वी पर अनेक जीव है पर मनुष्य सारे जीवो में अनोखा है। मनुष्य के अंदर की मनुष्यता ही मनुष्य होने का सबसे सटीक प्रमाण है। मनुष्यता का मतलब है दया, प्रेम, संवेदना, बुद्धि, विवेक आदि। यह मनुष्यता के प्रमाण हैं। किसी पशु में यह सब गुण नहीं पाए जाते हैं। यह दूसरे का सहयोग करना, किसी कमजोर के प्रति दया दिखाना और असहाय के प्रति संवेदनशीलता दिखाना यह सारे गुण मनुष्यता के प्रमाण है। पृथ्वी के मनुष्यों के अंदर जब तक मनुष्यता बरकरार रहेगी तब तक पृथ्वी पर मनुष्य का अस्तित्व बना रहेगा। जिस दिन मनुष्य के अंदर मनुष्यता समाप्त हो गई तो समझ लो मनुष्य के वजूद पर खतरा उत्पन्न हो गया। इसलिये अपने अंदर की मनुष्यता को जीवित रखना जरूरी है।

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