5. ब्रह्मचर्य का क्या महत्त्व है?
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ब्रह्मचर्य योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है सात्विक जीवन बिताना, शुभ विचारों से अपने वीर्य का रक्षण करना, भगवान का ध्यान करना और विद्या ग्रहण करना। यह वैदिक धर्म वर्णाश्रम का पहला आश्रम भी है, जिसके अनुसार यह ०-२५ वर्ष तक की आयु का होता है और जिस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिये शिक्षा ग्रहण करनी होती है। ब्रह्मचर्य से असाधारण ज्ञान पाया जा सकता है वैदिक काल और वर्तमान समय के सभी ऋषियों ने इसका अनुसरण करने को कहा है क्यों महत्वपूर्ण है ब्रह्मचर्य- हमारी जिंदगी मे जितना जरुरी वायु ग्रहण करना है उतना ही जरुरी ब्रह्मचर्य है। आज से पहले हजारों वर्ष से हमारे ऋषि मुनि ब्रह्मचर्य का तप करते आय है क्योंकि इसका पालन करने से हम इस संसार के सर्वसुख की प्राप्ति कर सकते है
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ब्रह्मचारी का शरीर स्वस्थ रहता है , उसका मन प्रसन्न रहता है और उनकी बुद्धि भी स्वच्छ एंव पवित्र रहती है । इसलिए बाइबिल मेँ भी एक नही , अनेक स्थानोँ पर व्याभिचार , विषय-वासना और विलासिता को बार बार बताया गया है ब्रह्मचर्य पालन से आत्मबल बढ़ता है । एक ब्रह्मचारी मे दैवी गुण कूट-कूट कर भरे रहते हैँ ।