Environmental Sciences, asked by rajnirajput60891, 9 months ago

5. भारत के पास अत्यधिक क्षमता गैर परम्परागत ऊर्जा के स्त्रोत है। इस वाक्य की व्याख्या
उदाहरण सहित 250 शब्दों में कीजिए।​

Answers

Answered by linasunil85
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Answer:

अत: अपशिष्ट पदार्थों से सौर ऊर्जा, पवन, ज्वार, बायोमास और ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने की आवश्यकता है। इन्हें गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत कहा जाता है।

गैर-पारंपरिक ऊर्जा के स्रोत

-परम्परागत उर्जा के स्रोत

-सौर ऊर्जा

-पवन ऊर्जा

-महासागरीय ऊर्जा

-ऊर्जा स्रोत के तौर पर ज्चार क्रीक समस्याएं

-भूतापीय ऊर्जा

-बायोमास ऊर्जा

-जैव ईंधन

Explanation:

परम्परागत उर्जा के स्रोत

आज भी ऊर्जा के परम्परागत स्रोत महत्वपूर्ण हैं, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता, तथापि ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों अथवा वैकल्पिक स्रोतों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इससे एक ओर जहां ऊर्जा की मांग एवं आपूर्ति के बीच का अन्तर कम हो जाएगा, वहीं दूसरी ओर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का संरक्षण होगा, पर्यावरण पर दबाव कम होगा, प्रदूषण नियंत्रित होगा, ऊर्जा लागत कम होगी और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन स्तर में भी सुधार हो पाएगा।

वर्तमान में भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिन्होंने 1973 से ही नए तथा पुनरोपयोगी ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने के लिए अनुसंधान और विकास कार्य आरंभ कर दिए थे। परन्तु, एक स्थायी ऊर्जा आधार के निर्माण में पुनरोपयोगी ऊर्जा या गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के उत्तरोत्तर बढ़ते महत्व को तेल संकट के तत्काल बाद 1970 के दशक के आरंभ में पहचाना जा सका।

सौर ऊर्जा

सूर्य ऊर्जा का सर्वाधिक व्यापक एवं अपरिमित स्रोत है, जो वातावरण में फोटॉन (छोटी-छोटी प्रकाश-तरंग-पेटिकाएं) के रूप में विकिरण से ऊर्जा का संचार करता है। संभवतः पृथ्वी पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रासायनिक अभिक्रिया प्रकाश-संश्लेषण को माना जा सकता है, जो सूर्य के प्रकाश की हरे पौधों के साथ होती है। इसीलिए, सौर ऊर्जा को पृथ्वी पर जीवन का प्रमुख संवाहक माना जाता है। अनुमानतः सूर्य की कुल ऊर्जा क्षमता-75000 x 1018 किलोवाट का मात्र एक प्रतिशत ही पृथ्वी की समस्त ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है।

सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत में परिवर्तित करने की युक्तियां सौर सेल (solar Cells) कहलाती हैं। सर्वप्रथम व्यावहारिक सौर सेल 1954 में बनाया गया जो लगभग 1% सौर ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित कर सकता था। वहीं आधुनिक सौर सेलों की दक्षता 25% हैं। इनके निर्माण में सिलिकन का प्रयोग होता है। एक सामान्य सौर सेल लगभग 2 वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्रफल वाला अतिशुद्ध सिलिकन का टुकड़ा होता है जिसे धूप में रखने पर वह 0.7 वाट (लगभग) विद्युत उत्पन्न करता है।

पवन ऊर्जा

वायु की गति के कारण अर्जित गतिज ऊर्जा पवन ऊर्जा होती है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। कई शताब्दियों से पवन का ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रयोग होता रहा है, जैसे-अनाज फटकने में, पवन चालित नौकाओं आदि में।

पवन ऊर्जा का इस्तेमाल विद्युत उत्पन्न करने के अतिरिक्त, सिंचाई के लिए जल की पम्पिंग में किया जा सकता है। गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत मंत्रालय (एमएनईएस) की वार्षिक रिपोर्ट (2004-05) के अनुसार, भारत में तटीय पवन ऊर्जा क्षमता 45,000 मेगावाट मूल्यांकित की गई है जोकि पवन उर्जा सृजन के लिए उपलब्ध भूमि का 1% है। हालाँकि तकनीकी क्षमता को 13,000 मेगावाट के लगभग सीमित किया गया है।

गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और ओडीशा जैसे तटीय राज्यों का पवन ऊर्जा के संदर्भ में बेहतर स्थान है, क्योंकि इन राज्यों के तटीय क्षेत्रों में पवन की गति निरंतर 10 किमी. प्रति घंटा से भी अधिक रहती है।

पवन ऊर्जा की क्षमता के मामले में गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र अग्रणी राज्य हैं। वर्ष 2009-10 के अनुसार, देश में तमिलनाडु ने कन्याकुमारी के पास मुपडंल पेरुगुंडी में सर्वाधिक विंड टरबाइन्स स्थापित किए हैं।

महासागरीय ऊर्जा

महासागर तापांतर, तरंगों, ज्चार-भाटा और महासागरीय धाराओं के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है, जिससे पर्यावरण-अनुकूल तरीके से विद्युत उत्पन्न की जा सकती है। ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा तथा समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण तीन बेहद उन्नत प्रविधियां हैं।

समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण तकनीक (ओटीईसी) ने समुद्र की ऊपरी सतह के तापमान और 1,000 मीटर या अधिक की गहराई के तापमान के बीच तापांतर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बेहतर काम किया।

भारत के 6,000 किमी. लंबे तट क्षेत्र में तरंग ऊर्जा क्षमता लगभग 40,000 मेगावाट अनुमानित की गई है। तरंग ऊर्जा के लिए आदर्श अविस्थितियां अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में व्यापारिक पवनों की पेटियों में चिन्हित किए गए हैं।

जहाँ ज्वार तरंगों की ऊंचाई अधिक होती है, बहन महासागर के ज्वारों द्वारा विद्युत् उत्पादित की जा सकती है। महासागर ऊर्जा के सभी रूपों में ज्चारीय ऊर्जा से सर्वाधिक ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है। भारत में, ज्वारीय ऊर्जा के क्षमतावान क्षेत्रों के रूप में पश्चिमी तट पर गुजरात में कच्छ एवं खम्भात की खाड़ी तथा पूर्वी तट पर पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन की पहचान की गई है।

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