History, asked by patilm52155, 8 months ago

5 गुप्तोत्तर कालीन साहित्य एवं विज्ञान की प्रगति की समीक्षा कीजिए।​

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Answered by parevaprerna
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गुप्तयुग में साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। गुप्त साम्राज्य की स्थापना के साथ ही संस्कृत भाषा की उन्नति को बल मिला तथा यह राजभाषा के पद पर आसीन हुई। गुप्त शासक स्वयं संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रेमी थे तथा उन्होंने योग्य कवियों, लेखकों एवं साहित्यकारों को राज्याश्रय प्रदान किया।

प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त को कविराज कहती है, जिसकी रचनायें विद्वानों की जीविका की स्रोत थी। परंतु दुर्भाग्यवश हमें उसका किसी भी रचना के विषय में पता नहीं है। चंद्रगुप्त द्वितीय भी बङा विद्वान एवं साहित्यानुरागी था, जिसकी राजसभा नवरत्नों से अलंकृत थी।

गुप्तयुगीन कवियों में सबसे पहला उल्लेख उनका किया जाता है, जिनकी रचनायें तो हमें प्राप्त नहीं हैं, लेकिन जिनके विषय में मात्र हम उनके द्वारा रचित प्रशस्तियों से ही जानते हैं। ये प्रशस्तियाँ संस्कृत काव्य का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार के कवियों में तीन नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं-

हरिषेण

हरिषेण समुद्रगुप्त का सेनापति एवं विदेश सचिव था। उसकी सुप्रसिद्ध कृति प्रयाग-प्रशस्ति है, जिसे इसमें काव्य कहा गया है। इस प्रकार साहित्य और इतिहास दोनों ही दृष्टियों से प्रयाग-प्रशस्ति का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है।

वीरसेन ‘शाब’,

वीरसेन चंद्रगुप्त द्वितीय का युद्ध-सचिव था। उसकी रचना उदयगिरि गुहालेख है, जिसमें उसे शब्द, अर्थ, न्याय, व्याकरण, राजनीति आदि का मर्मज्ञ, कवि एवं पाटलिपुत्र का निवासी कहा गया है।

वत्सभट्टि

वत्सभट्टि कुमारगुप्त प्रथम का दरबारी कवि था। वह संस्कृत का प्रकांड विद्वान था, जिसने मंदसोर प्रशस्ति की रचना की थी। इसकी रचना मालव संवत् 529 (472 ईस्वी) में की गयी। इसमें दशपुर में सूर्य मंदिर बनवाये जाने का वर्णन है। प्रशस्ति में कुल 44 श्लोक हैं।

इन लेखकों के अलावा कालिदास को भी गुप्त युग का ही लेखक माना गया है। कालिदास गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय का समकालीन था। कालिदास ने सात ग्रंथों की रचना की थी जो निम्नलिखित हैं-

रघुवंश,

कुमारसंभवम्,

मेघदूत,

ऋतुसंहार,

मालविकाग्निमित्रम्,

विक्रमोवर्शीय,

अभिज्ञान शाकुन्तलम्।

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