Hindi, asked by arshisheikh8888, 7 months ago

5. "घर में विधवा रही पतोहू ....... खैर पैर की जूती, जोरू/एक न सही दूजी आती" इन पंक्तियों
को ध्यान में रखते हुए 'वर्तमान समाज और स्त्री' विषय पर एक लेख लिखें।​

Answers

Answered by shimoniagarwal25
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विषय - समाज में स्त्री की दशा

Explanation:

वर्तमानकालमें समाजमें स्त्री की दशा अत्यंत दयनीय है I ऊपरलिखीपंक्तियों से साफ जाहिर होता है किवह आज कितनीसहनशक्ति रख रही हैI उसपरअत्याचार बढता जI रहा है , मुख्यतः ग्रामों और बस्तियों मेंI आज- समाजमें महिलाएं दिन दूनीरात चौगुन तरक्की करके अपने देश का नाम रोशन कर रहीं हैं , अपने देश का झंडा फहरा रहीं हैं I परन्तु गाँव के लोग तरक्की के रास्ते जुडने की जगह अपने पुराने रीती- रिवाजों के बहाने उनको दबा रहें हैं I शराबी अपने घर जाकर अपनी पत्नीयों से मारपीट करते है I विधवा औरत की समाज में कोई जगह नहीं हैं I बच्ची और बच्चे में आज भी भेदभाव किया जाता है I हमें अपनी सोच को बढाना चाहिए और स्त्री को व्यक्तिगत आजादी देनी चाहिए I

Answered by krbishnoi46
7

Answer:

भारतीय समाज पुरूष प्रधान समाज है जहाँ स्त्रियों की स्थिति आर्थिक, सामाजिक और व्यावहारिक रूप से बहुत खराब है| गाँव में स्त्रियों की स्थिति और भी अधिक दयनीय है| विधवा होने के बाद औरतों को अभिशाप माना जाता है और पति की हत्या का कारण भी उन्हें ही माना जाता है| पत्नी को अपनी पैर की जूती समझने वाले पुरूष उनके मरने के बाद दूसरी शादी करने में अधिक समय नहीं लगाते| जबकि विधवा महिला का पुनर्विवाह समाज के परंपरा के विरूद्ध माना जाता है| इस प्रकार वर्तमान समाज में भी स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है|

Explanation:

प्रस्तुत कविता में स्त्री की स्थिति बड़ी ही दयनीय बताई गई है। विधवा स्त्री से सहानुभूति रखने की अपेक्षा उसे पति की हत्यारिन करार दिया जाता है। कोतवाल उसे बिना किसी कारण के धमकाता है और उसके साथ कुकर्म करने से भी नहीं चुकता। उसे इतना पीड़ित किया जाता है कि वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दी जाती है।

वर्तमान युग की बात करें तो स्त्रियों की स्थिति पहले की तुलना में कई बेहतर है। आज एक बार लगभग सभी देशों में स्त्री पुनः अपनी शक्ति का लोहा मनवा रही है। हम कह सकते हैं कि आज का युग स्त्री-जागरण का युग है। भारत में तो सर्वोच्च राष्ट्रपति पद की कमान भी स्त्री ने सँभाली है। शिक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान, चिकित्सा, शासन कार्य और यहाँ तक कि सैनिक बनकर देश की रक्षा के लिए मोर्चों पर जाने में भी वे पीछे नहीं रही है। अब स्त्री अबला नहीं अपराजिता है और उसकी जीत में पुरुषों का योगदान ठीक वैसे ही है जैसे एक पुरुष की जीत में स्त्री का हाथ होता है।

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