Hindi, asked by bhagyapriyasamal2005, 8 months ago

5. इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।​

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Answered by shukladivya151
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Answered by anjalimeena70541
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इस पाठ का शिक्षक दुख का अधिकार पूरी तरह से उचित है लेखक बता रहे हैं कि जब हमारे घर में ऐसी कोई भी दुखद घटना होती है तो हम सब उस घटना से व्यथित और दुखित हो जाते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब दुख तो सबको एक जैसा ही होता है तकलीफ सबको होती है शोक सब मनाते हैं परंतु जो पैसे वाले होते हैं या संभ्रांत होते हैं वह अपना वह अपना दुख आराम से मना लेते हैं अर्थात वह घर पर रह कर ही अपने दुख को प्रकट करते हैं दूसरों को दूसरों के सहारे जैसे रिश्तेदार हैं समाज के लोग हैं उनके साथ परंतु जो गरीब है वह अपना दुख कुछ क्षणों के लिए या फिर एक आद दिन के लिए दूसरों के साथ रह कर बैठता है बाकी उससे अपना दुख अकेले ही बैठना पड़ता है क्योंकि उसको कमाने के लिए बाहर निकलना पड़ता है इस तरह से पाठ का जो नाम है दुख का अधिकार वही ठीक है लेखक ने इसमें बता रहा है कि उसके पड़ोस में एक सम्राट महिला थी वह पुत्र शोक में से दुखी थी और यह जो अम्मा है यह भी पुत्र सुख से दुखी है पर वह सम्राट महिला ढाई महीने तक बिस्तर में रही पर वह जो बड़ी बूढ़ी अम्मा है वह अपने बेटे का अंतिम संस्कार ने के तुरंत बाद बाजार में बिक्री के लिए आ गए इस प्रकार से इस पाठ का नाम दुख का अधिकार नाम सही है

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