Social Sciences, asked by kamleshdhruw912, 26 days ago

5 जनमत निर्माण में आने वाली दो बाधाओं को लिखिए।​

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Answered by pratimadevigee
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“लोकमत का अभिप्राय समाज में प्रचलित उन विचारों एवं निर्णयों के समूह से होता है जो सामान्यतः निश्चित रूप से प्रतिपादित होते हैं, जिनमें स्थायित्व का कुछ अंश होता है और जिनके प्रतिपादक उन्हें इस अर्थ में सामाजिक समझते हैं कि वे अनेक मस्तिष्कों के सामूहिक विचार के परिणाम हैं।”

रूसो का कहना है कि “लोकमत किसी विशेष समय या स्थान में प्रचलित प्रभावपूर्ण विचारधाराओं के आधारों पर निर्मित सार्वजनिक मत है।"

डॉ. बेनी प्रसाद के अनुसार, “यदि बहुसंख्या थोड़े की भलाई को ध्यान में रखकर (अर्थात् सम्पूर्ण समाज की भलाई को सामने न रखकर) कोई मत स्थिर करती है, तो हम उसे जनमत नहीं कह सकते। हम उस मत को जनमत कहते हैं जो समस्त समाज की उन्नति के लिए हो।”

bhai ham ko tho pata nhi ki upsc hai ab yai lo

भारत में प्रशासन 

जनमत Public Opinion

 September 8, 2015 admin 22915 Views  0 Comment

जैसाकि जनमत शब्द से ही स्पष्ट है कि यह दो शब्दों जन और मत के योग से बना है। जन का अर्थ संयुक्त हित वाले लोगों की समष्टि है। मत मौखिक रूप से अभिव्यक्त मनोभाव है जो किसी हित अथवा महत्वपूर्ण विषय पर व्यक्तियों अथवा समूहों के मनोभाव की झलक दर्शाता है। जनमत शब्द का प्रयोग प्रायः लोगों के उन विचारों के योग एवं समूह को दर्शाने के लिए किया जाता है जो वे अपने समुदाय के हितों को प्रभावित करने विषयों के संबंध में व्यक्त करते हैं। अतः यह माना गया है कि जनमत सभी प्रकार के विरोधी विचारों, विश्वासों, भ्रमों, पूर्वाग्रहों तथा आकांक्षाओं का संचय है।

जनमत की मान्यताएं

जनता वाद-विवाद एवं विचार-विमर्श के माध्यम से विवेकपूर्ण निर्णयों पर पहुंचती है।

जनता विषयों के बारे में बेहतर जानती है।

नागरिक सरकार के कार्यों में रुचि रखते हैं।

जनता चिंतन-मनन के पश्चात् चुनावों में या अन्यत्र अपनी इच्छा को व्यक्त करती है।

जनता की इच्छा अथवा कम-से-कम सामान्य इच्छा को कानून में बदला जाएगा।

निरंतर चौकसी और आलोचना जागरूक जनमत बनाए रखने को सुनिश्चित करेगी जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक नैतिकता एवं न्याय के सिद्धांत पर जन नीति बनेगी।

व्यक्ति के विचार उस चर्चा और बहस के आधार पर बनते हैं जो वह अपने निकट के लोगों जैसे- परिवार, पड़ोस, स्कूल, कॉलेज, मित्र समूह, हित समूह, क्लबों अथवा संस्थाओं में करता है। ये मनोवृतियां, विषय और उसकी महत्ता के आधार पर मत अथवा विश्वास का रूप ले सकती हैं। राजनीतिक दल भी जनमत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दल विभिन्न मुद्दों पर सभाएं, विरोध प्रदर्शन एवं हड़ताल इत्यादि करते हैं जिस कारण मुद्दों पर जनव्यापी बहस छिड़ जाती है, परिणामस्वरूप जनमत का निर्माण होता है। वर्तमान में कई बार जनसंचार माध्यमों से प्राप्त जानकारी भी जनमत का आधार बनती है। आज इंटरनेट, रेडियो, टेलिविजन एवं पत्र-पत्रिकाओं के युग में जानकारी का विपुल प्रवाह हो रहा है। यह जानकारी जनमत की आकृति एवं पुनराकृति प्रदान करती है। कई बार जनसंचार के साधनों अथवा विशेषज्ञों के प्रभाव से जनता किसी नीति का समर्थन अथवा विरोध, बिना जाने करती है कि वह जनसाधारण के हितों के विरुद्ध भी हो सकता है।

वस्तुतः कुछ विचारकों का मत है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार के सफल संचालन के लिए आवश्यक तीन तत्वों में से जनमत एक है और अन्य दो हैं- सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार एवं प्रतिनिध्यात्मक संस्थाएं। व्यवस्क मताधिकार लोकतांत्रिक सहभागिता की नींव है; प्रतिनिध्यात्मक संस्थाएं लोकतांत्रिक नियुक्तियों और जनमत लोकतांत्रिक संवाद को सुनिश्चित करते हैं। जनमत को नागरिकों की सामान्य अभिव्यक्ति समझे जाने के कारण सरकार के लिए भी उसे पूर्णतया नकार देना अत्यंत कठिन होता है।

भूमंडलीकरण के युग में सरकारें केवल जनमत से ही नहीं, अपितु अंतरराष्ट्रीय जनमत के प्रति भी सजग रहती हैं। गैर-राजनीतिक संस्थाओं, अंतरराष्ट्रीय जनमत औरराष्ट्रीय सीमाओं से पार मानवाधिकार की सुरक्षा एवं विस्तार, पर्यावरण, नाभिकीय, आणविक हथियारों की होड़ का विरोध, जातिगत भेदभाव, बल मजदूरी पर प्रतिबंध, लिंग आधारित न्याय के विस्तार जैसे आन्दोलनों के समक्ष सरकार को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष उत्तरदायी होना पड़ता है। इसलिए सरकार अंतरराष्ट्रीय जनमत के प्रति चिंतित रहती है। भारत के संदर्भ में सरकार को अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्थाओं- एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच व अन्य संस्थाओं को मानवाधिकार उल्लंघना, सांप्रदायिक हिंसा और जातीय अत्याचार मुद्दों पर जवाब देने पड़ते हैं। इस प्रकार सरकारों को आंतरिक और बाह्य जनमत के तीव्र दबाव में होने के कारण अपनी नीतियां और निर्णय निर्धारित करते समय जनमत का ध्यान रखना पड़ता है।

जनमत को जानने का सबसे प्रभावी, सरल एवं स्वीकृत माध्यम प्रेस एवं मीडिया है। मीडिया सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों को उनके बल और कमजोरियों के साथ उजागर करता है। हालांकि मीडिया की जनमत के नाम पर सरकार को प्रभावित करने के लिए अपने पक्ष, पूर्वाग्रह, निष्ठा, आदर्शों और हितों के अनुरूप आंकड़े तथा घटनाएं चुनने एवं दर्शाने के लिए निंदा भी होती रही है। वस्तुतः भारत में मीडिया पर अधिकतर बड़े व्यापारिक घरानों तथा उद्योगपतियों का नियंत्रण है। लेकिन यह सत्य है कि वर्तमान में मीडिया की व्यापक पहुंच, एवं उसके बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा ने विभिन्न विचारों एवं दृष्टिकोणों को अपेक्षतयाः अधिक व्यापक धरातल मुहैया कराया है।

जनमत संग्रहण लोगों की राय एकत्रित करने का एक महत्वपूर्ण ढंग बन गया है। यह राजनीतिक दलों को अपनी चुनावी रणनीति बनाने, कार्यक्रम समायोजित करने तथा चुनाव के दौरान आवश्यक गठबंधन करने में सहायता करता है। यह सरकार को उसकी नीतियों एवं शासन के प्रति लोगों के संतोष या असंतोष की जानकारी भी देता है। जनमत संग्रह एवं सर्वेक्षण लोकप्रिय हो रहे हैं तथा सरकार, राजनितिक दल, मीडिया एवं शोधकर्ता, जनमत को समझने एवं विश्लेषण करने के लिए इसका प्रयोग एक उपयोगी साधन के रूप में कर रहे हैं।

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