5- किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओके आधार पर लगभग 200 शब्दों मेंनिबंध लिखिए ।
विषय:-क)
मित्रता-आधुनिक शिक्षा प्रणाली ।
संकेत बिंदु :-
(i) भूमिका
(i)निरंतर एवं सतत मूल्यांकन
(iii) बदलती विधियां
(iv)उपसंहार
आशनिक नामी IT
Answers
Answer: सतत तथा व्यापक मूल्यांकन (Continuous and comprehensive evaluation) भारत के स्कूलों में मूल्यांकन के लिये लागू की गयी एक नीति है जिसे २००९ में आरम्भ किया गया था। इसकी आवश्यकाता शिक्षा के अधिकार के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक हो गया था। यह मूल्यांकन प्रक्रिया राज्य सरकारों के परीक्षा-बोर्डों तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा शुरू की गयी है। इस पद्धति द्वारा ६वीं कक्षा से लेकर १०वीं कक्षा के विद्यार्थियों का मूल्यांकन किया जाता है। कुछ विद्यालयों में १२वीं कक्षा के लिये भी यह प्रक्रिया लागू है।
अनुक्रम
1 इतिहास
2 सतत तथा व्यापक मूल्यांकन क्या है?
2.1 मूल्यांकनो से निकलने वाला अर्थ क्या होता है
3 दार्शनिक आधार
4 राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा- 2005
5 पाठ्यचर्या में मूल्यांकन का स्थान
6 योजना के उद्देश्य
इतिहास
भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने विद्यालय शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के दिनांक 20 सितंबर, 2009 को घोषित किया कि सतत और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) को सुदृढ़ बनाया जाएगा और अक्टूबर 2009 से कक्षा 9 के लिए सभी संबद्ध विद्यालयों में उपयोग किया जाएगा। परिपत्र में आगे बताया गया था कि वर्तमान शैक्षिक सत्र 2009 -10 से कक्षा 9 और 10 के लिए नई ग्रेडिंग प्रणाली लागू की जाएगी। दिनांक 29 सितंबर, 2009 के परिपत्र संख्या 40/29-09- 2009 में उल्लिखित कक्षाओं के लिए लागू की जाने वाली ग्रेडिंग प्रणाली के सभी विवरण प्रदान किए गए थे। सीबीएसई ने 6 अक्टूबर, 2009 से प्रशिक्षक-प्रशिक्षण फॉर्मेट में कार्यशालाओं के माध्यम से देश भर में सतत तथा व्यापक मूल्यांकन प्रशिक्षण देना आरंभ किया था।
सतत तथा व्यापक मूल्यांकन क्या है?
सतत तथा व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली जिसमें छात्र के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं।
यह निर्धारण के विकास की प्रक्रिया है जिसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। ये उद्देश्य व्यापक आधारित अधिगम और दूसरी ओर व्यवहारगत परिणामों के मूल्यांकन तथा निर्धारण की सततता में हैं।
इस योजना में शब्द ‘‘सतत’’ का अर्थ छात्रों की ‘‘वृद्धि और विकास’’ के अभिज्ञात पक्षों का मूल्यांकन करने पर बल देना है, जो एक घटना के बजाय एक सतत प्रक्रिया है, जो संपूर्ण अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में निर्मित हैं और शैक्षिक सत्र के पूरे विस्तार में फैली हुई है। इसका अर्थ है निर्धारण की नियमितता, यूनिट परीक्षा की आवृत्ति, अधिगम के अंतरालों का निदान, सुधारात्मक उपायों का उपयोग, पुनः परीक्षा और स्वयं मूल्यांकन।
दूसरे शब्द ‘‘व्यापक’’ का अर्थ है कि इस योजना में छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक तथा सह-शैक्षिक दोनों ही पक्षों को शामिल करने का प्रयास किया जाता है। चूंकि क्षमताएं, मनोवृत्तियां और अभिरूचियां अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा अन्य रूपों में प्रकट करती हैं अतः यह शब्द विभिन्न साधनों और तकनीकों के अनुप्रयोग के लिए उपयोग किया जाता है (परीक्षा और गैर-परीक्षा दोनों) तथा इसका लक्ष्य निम्नलिखित अधिगम क्षेत्रों में छात्र के विकास का निर्धारण करना हैः
ज्ञान
समझ / व्यापकता
लागू करना
विश्लेषण करना
मूल्यांकन करना
सृजन करना
आकलन
मापन
परीक्षा / परीक्षण
इस प्रकार यह योजना एक पाठ्यचर्या संबंधी पहल शक्ति है, जो परीक्षा को समग्र अधिगम की ओर विस्थापित करने का प्रयास करती है। इसका लक्ष्य अच्छे नागरिक बनाना है जिनका स्वास्थ्य अच्छा हो, उनके पास उपयुक्त कौशल तथा वांछित गुणों के साथ शैक्षिक उत्कृष्टता हो। यह आशा की जाती है कि इससे छात्र जीवन की चुनौतियों को आत्म विश्वास और सफलता के साथ पूरा कर सकेंगे।
मूल्यांकनो से निकलने वाला अर्थ क्या होता है
आकलन एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया है,जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विधार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं।
मूल्यांकन एक योगात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक कार्यक्रम अथवा पाठयक्रम की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात की जाती है।
मापन आकलन मूल्यांकन की एक तकनीक है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन किया जाता है।
परीक्षा तथा परीक्षण आकलन/मूल्यांकन का एक उपकरण/पद्धति है जिसके द्वारा परीक्षा/परीक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मुख्य रूप से पाठयक्रम के ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच की जाती है। तो दोस्तों इस तरह से इनके अर्थ निकलते है
और अधिक जाने सतत तथा व्यापक मूल्यांकन को और और साथ इससे सम्बन्ध रखने वाले सतत तथा व्यापक मुल्यांकन के प्रपत्र देखे
दार्शनिक आधार
शिक्षा का प्राथमिक प्रयोजन पुरुष और महिला में पहले से मौजूद सम्पूर्णता को प्रकट करना है (स्वामी विवेकानंद), शिक्षा का प्रयोजन बच्चे/व्यक्ति का चहुँमुखी विकास करना है। 21वीं सदी के लिए अंतरराष्ट्रीय शिक्षा आयोग की रिपोर्ट में यूनेस्को ने मनुष्यों के जीवन के चार स्तरों का उल्लेख किया है, जैसे भौतिक, बौद्धिक, मानसिक और आध्यात्मिक। इस प्रकार, चहुँमुखी विकास के रूप में शिक्षा का प्रयोजन भौतिक, बौद्धिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों में प्रत्येक बच्चे की छुपी हुई संभाव्यता का अनुकूलन करना है। देश में पहली बार सीबीएसई ने चहुँमुखी विकास के इस विशाल लक्ष्य को व्यवहार में लाने का प्रयास किया।
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