5) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं?
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क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं ? (ख) तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह! देख विषमता तेरी - मेरी बजा रही तिस पर रणभेरी !
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दाबानल की ज्वालाएँ' से आशय है बहुत भारी दुःख। यह जेल में कैदियों को दी जा रही अमानवीय यातनाओं के लिए कहा गया है। कोयल की कूक को दर्द भरी चीख मानकर प्रश्नात्मक शैली से कवि कोयल के कष्ट का अनुमान लगा रहा है। कोयल का मानवीकरण तथा प्रश्नात्मक शैली बहुत प्रभावी बन पड़ा है।
'दाबानल की ज्वालाएँ' में विम्बात्मक शैली के साथ अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
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