5. (क) सम्भाषण करते समय किन-किन दुर्गुणों से बचना चाहिए। पाठ्य निबंध के आधार पर समझाइये। 8
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समष्टिगत संभाषण में व्यक्ति की सहमति अथवा असहमति का कोई महत्व नहीं रहता। शिक्षक या किसी नेता का संभाषण यदि एक-दो की समझ में नहीं आता तो भाषण को रोका नहीं जाता। लेकिन व्यक्तिगत संभाषण में व्यक्ति की रुचि और स्वभाव का ध्यान रखना पड़ता है।
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उत्तर:संभाषण में व्यक्ति की सहमति अथवा असहमति का कोई महत्व नहीं रहता। शिक्षक या किसी नेता का संभाषण यदि एक-दो की समझ में नहीं आता तो भाषण को रोका नहीं जाता। लेकिन व्यक्तिगत संभाषण में व्यक्ति की रुचि और स्वभाव का ध्यान रखना पड़ता है।
:1.भाषण करते समय बहुत से मनुष्य ‘जी हां, जी हां’ का है। ऐसे मनुष्यों से कुछ भी कहा जाये, ये ‘नहीं’ कहना जानते ही नहीं। इनके सामने असंभव बातें करते जाएंगे परंतु उनका सिर हिलेगा तब आकाश से रवाना होकर पाताल में ह ठहरेगा। किसी मनुष्य हर एक बात को ‘नहीं’ कहने और उसका प्रतिरोध करने का स्वाभाव हो जाता है।2.कुछ मनुष्य वे सदैव अनुपस्थित लोगों की निंदा करते हैं। किसी मनुष्य के आचरण के विषय में राय देना, उसके संबंध में भली-बुरी बातें कहना और समाज की दृष्टि में उसे नीचे गिराने का प्रयत्न करना। परंतु इनका उद्देश्य कभी सिद्ध नहीं होता।3.ऐसे मनुष्य जो दूसरों को कुछ कहने ही नहीं देते। वे चाहते हैं कि सभी सिर्फ उनकी बातें ही सुनें। और वे जो कहें उसे चुपचाप सुनते जाएं।4.कुछ मनुष्य वे सदैव अनुपस्थित लोगों की निंदा करते हैं। किसी मनुष्य के आचरण के विषय में राय देना, उसके संबंध में भली-बुरी बातें कहना और समाज की दृष्टि में उसे नीचे गिराने का प्रयत्न करना। परंतु इनका उद्देश्य कभी सिद्ध नहीं होता।5.समय और समाज की आवश्यकताओं के विरुद्ध कभी कुछ भी नहीं बोलना चाहिए। किसी विषय पर कुछ बोलने की अपेक्षा उसको सुनना अच्छा है। किसी विषय पर बातचीत समाप्त हुए बिना किसी नए विषय को शुरू नहीं करना चाहिए।6.बहुत से लोग बातचीत करते समय अपनी विद्वता प्रदर्शित करना चाहते हैं और आत्म-प्रशंसा सूचक बातें करते हैं। यह भी उचित नहीं है। भाषण करते समय चार बातों पर ध्यान देना चाहिए : (1) सच्चाई (2) समय और समाज की आवश्यकता (3) भाषा की सरलता तथा सौंदर्य (4) शिष्ट आनंद-वर्धक वार्तालाप। जो मनुष्य इन पर ध्यान देकर भाषण करते हैं, दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। झूठ बोलकर दूसों के साथ हम खुद अपना भी नुकसान कर बैठते हैं।
:1.भाषण करते समय बहुत से मनुष्य ‘जी हां, जी हां’ का है। ऐसे मनुष्यों से कुछ भी कहा जाये, ये ‘नहीं’ कहना जानते ही नहीं। इनके सामने असंभव बातें करते जाएंगे परंतु उनका सिर हिलेगा तब आकाश से रवाना होकर पाताल में ह ठहरेगा। किसी मनुष्य हर एक बात को ‘नहीं’ कहने और उसका प्रतिरोध करने का स्वाभाव हो जाता है।2.कुछ मनुष्य वे सदैव अनुपस्थित लोगों की निंदा करते हैं। किसी मनुष्य के आचरण के विषय में राय देना, उसके संबंध में भली-बुरी बातें कहना और समाज की दृष्टि में उसे नीचे गिराने का प्रयत्न करना। परंतु इनका उद्देश्य कभी सिद्ध नहीं होता।3.ऐसे मनुष्य जो दूसरों को कुछ कहने ही नहीं देते। वे चाहते हैं कि सभी सिर्फ उनकी बातें ही सुनें। और वे जो कहें उसे चुपचाप सुनते जाएं।4.कुछ मनुष्य वे सदैव अनुपस्थित लोगों की निंदा करते हैं। किसी मनुष्य के आचरण के विषय में राय देना, उसके संबंध में भली-बुरी बातें कहना और समाज की दृष्टि में उसे नीचे गिराने का प्रयत्न करना। परंतु इनका उद्देश्य कभी सिद्ध नहीं होता।5.समय और समाज की आवश्यकताओं के विरुद्ध कभी कुछ भी नहीं बोलना चाहिए। किसी विषय पर कुछ बोलने की अपेक्षा उसको सुनना अच्छा है। किसी विषय पर बातचीत समाप्त हुए बिना किसी नए विषय को शुरू नहीं करना चाहिए।6.बहुत से लोग बातचीत करते समय अपनी विद्वता प्रदर्शित करना चाहते हैं और आत्म-प्रशंसा सूचक बातें करते हैं। यह भी उचित नहीं है। भाषण करते समय चार बातों पर ध्यान देना चाहिए : (1) सच्चाई (2) समय और समाज की आवश्यकता (3) भाषा की सरलता तथा सौंदर्य (4) शिष्ट आनंद-वर्धक वार्तालाप। जो मनुष्य इन पर ध्यान देकर भाषण करते हैं, दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। झूठ बोलकर दूसों के साथ हम खुद अपना भी नुकसान कर बैठते हैं।
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