History, asked by sunnykumar9728854688, 2 months ago

5)
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
)
एक स्रोत के रूप में पुरातत्व
3)
गंगा घाटी में जनपदों और महाजनपदों का उदय
भारत पर सिकंदर का आक्रमण
10)
तिनैं अवधारणा​

Answers

Answered by sagarmishra9098
0

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Answered by jyotikumari7343
2

Answer:

प्राचीन भारत के राजशास्त्रियों में कौटिल्य का स्थान सबसे ऊँचा है 'और उसे शासन, कला तथा कूटनीति का सबसे महान् प्रतिपादक माना जाता है। कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसका मुख्य विषय राजनीति है। सलेटोरे के अनुसार, "प्राचीन भारत की राजनीतिक विचारधाराओं में सबसे अधिक देन कौटिल्य की विचारधारा की है।"

कौटिल्य के राजनीतिक विचार :

कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र' मूल रूप से राजनीति का ग्रन्थ है। इसकी विषय-वस्तु में जिन अन्य बातों को समाहित किया गया है, वे सभी राजनीति से सम्बद्ध होने के कारण इसमें स्थान पा सकीं। कौटिल्य के प्रमुख राजनीतिक विचार निम्नलिखित हैं

कौटिल्य द्वारा वर्णित राज्य का सावयवी रूप कोई विदेशी आयात नहीं है, वरन् शुद्ध रूप से भारतीय है । वह राज्य की सर्वोच्च कार्यपालिका का मूर्त रूप है। उसके बाद मन्त्री आते हैं, जो राजा को आवश्यक परामर्श देते हैं तथा शासन का संचालन करते हैं। दुर्ग राज्य की प्रतिरक्षा का प्रमुख साधन होते हैं और उनके द्वारा ही जनता की सुरक्षा सम्भव है। जनपद अथवा भूभाग राज्य के अस्तित्व का भौतिक आधार है। राज्य व जनता की सुख-समृद्धि के लिए कोष का होना अत्यन्त आवश्यक है। बिना दण्ड के राज्य में शान्ति और व्यवस्था सम्भव नहीं है । अन्त में मित्र राज्य का होना भी राज्य के अस्तित्व एवं सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

प्राचीन भारत में राज्य के सावयव रूप का उल्लेख मिलता है। उस समय के विद्वान् राज्य को एक सजीव प्राणी मानते थे। प्राचीन विचारकों के अनुसार सप्तांग राज्य की कल्पना एक जीवित शरीर की कल्पना है, जिसके सात अंग होते हैं। राज्य के सात अंगों के कारण ही उसके राज्य की प्रकृति सम्बन्धी सिद्धान्त 'सप्तांग' कहलाता है।

कौटिल्य के अनुसार राज्य के निम्न सात अंग हैं-

(i) स्वामी, (ii) अमात्य, (iii) जनपद, (iv) दुर्ग,(v) कोष,(vi) दण्ड,तथा (vii) मित्र । प्राचीन भारत में राज्य के इन सात अंगों में से सभी का सुदृढ़ और स्वस्थ सहयोग आवश्यक माना जाता था।

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