5. कबीरदास जी ने समुद्र में रहने वाली सीप की क्या विशेषता बताई है?
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समुद्री जीव सीप दुनिया का एकमात्र ऐसा अद्भुत व अद्वितीय प्राणी है, जो शरीर में पहुँचकर कष्ट देने वाले हानिकारक तत्वों को बहुमूल्य रत्न यानी मोती में बदल देता है। यही नहीं समुद्री जीव-जन्तुओं के जानकार वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यदि सीप न हो तो पृथ्वी पर एक बूँद भी स्वच्छ व मीठा पानी मिलना मुश्किल है।
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समुद्री जीव सीप दुनिया का एकमात्र ऐसा अद्भुत व अद्वितीय प्राणी है, जो शरीर में पहुँचकर कष्ट देने वाले हानिकारक तत्वों को बहुमूल्य रत्न यानी मोती में बदल देता है। यही नहीं समुद्री जीव-जन्तुओं के जानकार वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यदि सीप न हो तो पृथ्वी पर एक बूँद भी स्वच्छ व मीठा पानी मिलना मुश्किल है।
Explanation:
सीप की यह भी विशेषता है कि यह प्रकृति से एक बार का आहार ग्रहण करने के बाद लगभग 96 लीटर पानी को कीटाणु मुक्त करके शुद्ध कर देता है और इसके पेट में जो कण, मृतकोशिकाएँ व अन्य बाहरी अपशिष्ट बचते हैं, उन्हें गुणकारी मोतियों में बदल देता है।
भारत के अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में मोती की खेती की सम्भावनाएँ तलाशी जा रही हैं। यदि मोती-सृजन की यह परिकल्पना भविष्य में सम्भव हो जाती है तो मोतियों का व्यापार करके अरबों डॉलर की कमाई भारत सरकार कर सकती है।
मोती एकमात्र ऐसा रत्न है, जिसे एक समुद्री जीव जन्म देता है। वरना अन्य सभी रत्न एवं मणियाँ धरती के गर्व से खनिजों के रूप में निकाली जाती हैं। इसीलिये पृथ्वी को ‘रत्नगर्भा‘कहा गया है। भारत के सभी प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में रत्नों का विस्तार से उल्लेख मिलता है। इनके गुण-दोषों का भी विवरण दर्ज है। ऋग्वेद के पहले ही मंत्र में अग्नि को ‘रत्न धानतमम् कहा गया है। जिसका अर्थ है, अग्नि रत्नों की उत्पत्ति में सहायक होती है।
वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसन्धानों से भी इस आवधारणा को बल मिला है कि ज्यादातर रत्न किसी-न-किसी ताप प्रक्रिया के प्रतिफलस्वरूप उपयोग लायक ग्रहण कर पाते हैं। रत्न एक अकार्बनिक प्रक्रिया का परिणाम है। सभी रत्नों का एक निश्चित रासायनिक गुण-सूत्रों का संगठन भी होता है।
संयुक्त ग्रंथ ‘भाव प्रकाश’ रस रत्न समुच्चय और ‘आयुर्वेद प्रकाश’ में रत्नों का बखान है। प्राचीन काल में रत्न अपनी सुन्दरता और दुर्लभता के कारण मनुष्य जाति को लुभाते थे। बाद में इनका उपयोग गहनों के रूप में होने लगा। फिर इनके औषधीय एवं ज्योतिषीय महत्त्व का भी आकलन हुआ।
सीप से पैदा होने वाले मोती को अंग्रेजी में ‘पर्ल’ कहते हैं। यह लेटिन भाषा के ‘पेरिग्ल’ से निकला है। जिसका अर्थ