5.कविता का शीर्षक ' उत्साह ' क्यों रखा गया है ? [ 1.5 ] 6.उद्धव ज्ञानी ये , नीति की बातें जानते थे ; गोपियों के पास ऐसी कौन - सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी ? [ 1.5 ] 7.लेखक की दृष्टि में बालगोबित भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई । बालगोबिन भगत की मृत्यु कारणों तथा परिस्थितियों के [ 1.5 ] 8. सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे ? [ 1.5 ] 9.इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है , वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है ? [
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५..कविता का शीर्षक उत्साह रखने का मुख्य कारण यह है कि इस कविता में कवि बादल के माध्यम से समाज में क्रांति और उत्साह की भावना उत्पन्न कर एक महान परिवर्तन लाना चाहते हैं। कवि ने बादलों से गरजने का आह्वान है, जो बादलों के मोहक स्वरुप के स्थान पर उनके उत्साह को प्रदर्शित है।
६..उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे परंतु उन्हें व्यावहारिकता का अनुभव नहीं था। गोपियों ने यह जान लिया था कि उद्धव को श्रीकृष्ण से अनुराग नहीं हो सका, इसलिए उन्होंने कहा था, ‘प्रीति नदी में पाउँ न बोरयो’। उद्धव के पास इसका कोई जवाब न था। इससे गोपियों का वाक्चातुर्य मुखरित हो उठा। गोपियाँ कृष्ण के प्रति असीम, अथाह लगाव रखती थी। जबकि उद्धव को प्रेम जैसी भावना से कोई मतलब न था। उद्धव को इस स्थिति में चुप देखकर उनकी वाक्चातुर्य और भी मुखर हो उ ठी।
७..बालगोबिन भगत के अनुसार जो लोग शारीरिक रूप से अक्षम और मानसिक रूप से शिथिल होते हैं वे निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं |
८...चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा परन्तु चश्मेवाला एक देशभक्त नागरिक था। उसके हृदय में देश के वीर जवानों के प्रति सम्मान था। वह अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था उसकी इसी भावना को देखकर लोग उसे कैप्टन कहते थे।
९..हमारा बचपन इस पाठ में वर्णित बचपन से पूरी तरह भिन्न है। हमें अपने पिता का ऐसा लाड़ नहीं मिला। मेरे पिता प्रायः अपने काम में व्यस्त रहते हैं। प्रायः वे रात को थककर ऑफिस से आते हैं। वे आते ही खा-पीकर सो जाते हैं। वे मुझसे प्यार-भरी कुछ बातें जरूर करते हैं। मेरे लिए मिठाई, चाकलेट, खिलौने भी ले आते हैं। कभी-कभी स्कूटर पर बिठाकर घुमा भी आते हैं, किंतु मेरे खेलों में इस तरह रुचि नहीं लेते। वे हमें नंग-धडंग तो रहने ही नहीं देते। उन्हें मानो मुझे कपड़े से ढकने और सजाने का बेहद शौक है। मुझे बचपन में ए-एप्पल, सी-कैट रटाई गई। हर किसी को नमस्ते करनी सिखाई गई। दो ढाई साल की उम्र में मुझे स्कूल भेजने का प्रबंध किया गया। तीन साल के बाद मेरे जीवन से मस्ती गायब हो गई। मुझे मेरी मैडम, स्कूल-ड्रेस और स्कूल के काम की चिंता सताने लगी। तब से लेकर आज तक मैं 90% अंक लेने के चक्कर में अपनी मस्ती को अपने ही पाँवों के नीचे रौंदता चला आ रहा हूँ। मुझे हो-हुल्लड़ करने का तो कभी मौका ही नहीं मिला। शायद मेरा बचपन बुढ़ापे में आए? या शायद मैं अपने बच्चों या पोतों के साथ खेल कर सकें।
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